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________________ एस धम्मो सनंतनो हिंसा तभी तक उठती है जब तक हमारे भीतर तरंगें हैं, जब तक यह कर लूं, तो फिर जो भी मार्ग में पड़ जाता है उसे मिटा दें। फिर यह बन जाऊं और जो भी प्रतिस्पर्धा करता है, उससे दुश्मनी हो जाती है। जिसे न कुछ बनना है, न कुछ होना है, न कुछ पाना है, जो अपने होने से राजी हो गया, जो अपने भीतर राजी हो गया, जिसकी तथाता फल गयी, फिर उसकी कैसी हिंसा! उसका किसी से कोई वैमनस्य नहीं है, स्पर्धा नहीं है, प्रतियोगिता नहीं है, वह अहिंसक हो जाता है। अहिंसा यानी महत्वाकांक्षा से मुक्ति। स्थविर का संबंध उम्र या देह से नहीं, बोध से है। जिसके भीतर चैतन्य का अनुभव जिसे होने लगा कि मैं देह नहीं, चेतना हूं। यह देह तो मेरा मकान है, मैं उसके भीतर निवास कर रहा हूं। मैं मिट्टी का दीया नहीं, दीए के भीतर जलती ज्योति हूं। जिसे ऐसा अनुभव होने लगा, वही व्यक्ति स्थविर है। बोध न तो समय में और न स्थान में सीमित है। बोध समस्त सीमाओं का अतिक्रमण है, बोध तादात्म्य से मुक्ति है। ये तीन छोटी-छोटी कथाएं हैं, इनके साथ बंधी हुई ये छोटी-छोटी गाथाएं हैं, ये तुम्हारे जीवन के बहुत से पृष्ठों को उघाड़ दे सकती हैं। ये तुम्हारे जीवन में नए अध्याय की शुरुआत बन सकती हैं। __ ऐसे ही हम बुद्ध के और सूत्रों पर विचार करेंगे। और मैं इन गाथाओं को उनकी कहानियों के साथ रख रहा हूं, ताकि तुम्हें पूरा संदर्भ समझ में आ जाए, पूरी परिस्थिति समझ में आ जाए। क्यों, किस स्थिति में बुद्ध ने कोई वचन कहा है। ये वचन अपूर्व हैं। सीधे-सरल, पर बहुत गहरे। तुम्हारे मन पर इनकी चोट पड़ जाए तो कोई कारण नहीं है कि तुम भी किसी दिन बुद्धत्व को क्यों न उपलब्ध हो जाओ! बुद्धत्व सबका जन्मसिद्ध अधिकार है। आज इतना ही। 34
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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