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________________ एस धम्मो सनंतनो कर ज्ञानी हो जाते हैं। शब्दों का कूड़ा-करकट इकट्ठा कर लेते हैं और सोचते हैं, हो गया सब। नहीं मंदमति नहीं हो, इसीलिए। महाभारत की कथा तुम्हें याद है न! द्रोण पाठ देते हैं अपने विद्यार्थियों को। सब विद्यार्थी पाठ याद कर लाए, सिर्फ यधिष्ठिर नहीं याद कर पाया। उसने कहा, अभी नहीं हुआ याद। एक दिन क्षमा हो गयी, दूसरे दिन क्षमा हो गयी, फिर तो द्रोण चिंतित होने लगे; और यह तो बात उलटी हुई जा रही है। द्रोण ने सोचा था, युधिष्ठिर सबसे ज्यादा बुद्धिमान है। दूसरे भी, दुर्योधन भी याद कर लाया, भीम भी याद कर लाया, जिनमें बुद्धि का कुछ आसार नहीं है, जिन्हें मंदमति होना ही चाहिए नहीं तो भीम न हो सकेंगे-वह भी याद कर लाए, सिर्फ युधिष्ठिर पिछड़ते जाते हैं। आखिर द्रोण ने पूछा, बात क्या है? तुझे याद क्यों नहीं होता? युधिष्ठिर ने कहा, याद इसलिए नहीं होता कि जब तक जीवन में न उतरे तब तक याद का मतलब भी क्या! पहला पाठ था, सत्य बोलना चाहिए। वह किताब का पहला पाठ था। उस जमाने की किताबें! बड़े अदभुत लोग रहे होंगे, पहला पाठ, सत्य बोलना चाहिए। युधिष्ठिर ने कहा कि यह तो मुझे भी याद हो गया कि सत्य बोलना चाहिए, मगर इसको याद करने से क्या सार है जब तक यह मेरे जीवन में रच-पच न जाए। मेरी स्मृति में रहे तो उसका क्या सार है, जब तक मेरा बोध न बन जाए। समय लगेगा। आप मुझे क्षमा करें, मैं बहुत मंदबुद्धि हूं। ___ युधिष्ठिर ही मंदबुद्धि नहीं थे। दूसरे तो याद करके आ गये थे, कि सत्य बोलना चाहिए-इसको याद करना था, तो मंत्र की तरह कंठस्थ कर लाए, आकर दोहरा दिया था, बात खतम हो गयी थी। शायद युधिष्ठिर को जीवनभर लगा उस छोटे से पहले पाठ को पूरा करने में। और मजा यह है कि पहला पाठ पूरा हो गया तो आखिरी भी तो पूरा हो गया! इसलिए मैं कहता हूं, बड़े अदभुत लोग थे। पहला पाठ ऐसा था जो कि आखिरी पाठ भी है। अब सत्य से और बड़ा पाठ क्या है? बात ही खतम हो गयी वहां। यहां पहला कदम ही तो आखिरी कदम हो जाता है। जिस दिन युधिष्ठिर ने पहला पाठ याद कर लिया होगा-युधिष्ठिर के ढंग से, कि रोएं-रोएं में पच गया होगा—उस दिन और क्या करने को बचा! सारे शास्त्र पूरे हो गये। सारे आश्वासन पूरे हो गये। यात्रा समाप्त हो गयी। ___मैत्रेय ने पूछा है, 'मुझे लगता है, अब तक आपकी एक भी बात मैं न सुन सका हूं, न समझ सका हूं।' __शुभ है ऐसा लगना। नहीं कि तुमने सुना नहीं, तुमने सुना–मैत्रेय के कान बिलकुल ठीक हैं, ध्यान से सुनते हैं लेकिन सुनने से ही क्या होता है! यह बोध बना रहे तो असली सुनना भी एक दिन हो जाएगा। अगर यह बोध खो गया और सुनकर ही समझ लिया कि सुन लिया, तो फिर कभी बोध की कोई संभावना नहीं है। 298
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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