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________________ सत्य अनुभव है अंतश्चक्षु का प्रमाणित हो गयी। अपने ही अनुभव से प्रमाणित हो गयी। फिर तुम उसे ईश्वर नाम दे सकते हो, या मोक्ष, या निर्वाण, या सत्य, जो भी तुम नाम देना चाहो। लेकिन उसके पहले खोज शुरू नहीं होती। ___ संसार में ईश्वर के खोजी इतने कम इसलिए हैं कि ईश्वर के नाम पर बहुत धोखा-धड़ी है, और ईश्वर के नाम पर कच्चे लोगों को धर्म की दिशा में निष्णात किया जाता है। ईश्वर के नाम पर लोगों का लोभ उकसाया जाता है। लोभ से मुक्ति नहीं होती, लोभ उकसाया जाता है। __ तुम्हें तुम्हारे शास्त्र अधिकतर यही समझाते रहते हैं कि छोड़ दो तो बहुत पाओगे। और जब कोई बहुत पाने के लिए छोड़ता है तो छोड़ता ही नहीं। पाने के लिए छोड़ा तो छोड़ा कहां! एक रुपया छूटा और हजार मिलने वाले हैं तो छूटे कहां! तुमने तो बड़ा सौदा कर लिया, एक रुपया छोड़ा और हजार पाने का इंतजाम कर लिया। तो तुम्हारे लगाव तो वही के वही हैं, तुम बदलते तो रत्तीभर नहीं, तुम्हारा ईश्वर भी तुम्हारे साथ झूठा हो जाता है-तुम झूठे हो, तुम्हारा ईश्वर झूठा हो जाता है। तुम अभी सच्चे नहीं। तुमने अभी इस जीवन का जो अवसर तुम्हें मिला है, इसकी ठीक-ठीक जांच-परख नहीं की। तो पहली तो बात मैं यह कहता हूं, इसकी ठीक जांच-परख करो; यह अवसर बहुमूल्य है, इसे ऐसे ही मत गंवा दो। इसे फिजूल बातों में मत गंवा देना। किसी ऐरे-गैरे की बातों में मत गंवा देना। यह तुम्हारा जीवन है, इस जीवन को तुम अनुभव करो। तुम्हें अगर क्रोध उठता है तो क्रोध का अनुभव करो, ताकि क्रोध की पीड़ा साफ हो जाए। इतनी साफ हो जाए कि उसी स्पष्टता के कारण क्रोध करना मुश्किल हो जाए। तुम्हें काम है, तो काम में उतर जाओ, मगर इतने गहरे उतर जाओ कि तुम्हें काम में कुछ भी सार नहीं है, ऐसा सूत्र उपलब्ध हो जाए-जीवंत अनुभव से। तुम्हें धन की दौड़ है, कोई हर्जा नहीं, दौड़ लो, जल्दी कुछ भी नहीं है। अगर तुम बिना धन की दौड़ में गये और महात्मा हो गये तो तुम महात्मा होकर भी धन की दौड़ ही जारी रखोगे। कुछ फर्क न पड़ेगा। अगर तुम्हें राजनीति में रस है तो लड़ ही लो चुनाव, उतर जाओ उसी उपद्रव में, हो ही लो पागल। अगर तुम बीच में ही लौट आए, गये नहीं कि अरे उसमें क्या रखा है, बुद्धिमानों की बात मान ली, उधार बात मान ली कि बुद्धिमान कहते हैं, राजनीति में क्या रखा है और तुम गये नहीं, तुम महात्मा हो जाओगे, लेकिन तुम्हारी जिंदगी राजनीतिज्ञ की ही जिंदगी होगी। तुम बैठ जाओगे आसन लगाकर, लेकिन तुम्हारे भीतर राजनीतिज्ञ मौजूद रहेगा। जीवन में रूपांतरण अनुभव से आते हैं। भीतर की बदलाहट से आते हैं, बाहर की बदलाहट से नहीं। धर्म के नाम पर लोगों ने बाहर खूब बदलाहटें कर ली हैं। मैंने सुना है, एक रूसी कथा है। एक कौवा बड़ी तेजी से उड़ता जा रहा था। 293
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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