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एस धम्मो सनंतनो
सत्य की खोज का अर्थ हुआ, अज्ञात में जाना है, अंधेरे में उतरना है, अनजान, अपरिचित से दोस्ती करनी है। सत्य है भी, इसका भी कोई भरोसा नहीं दिला सकता तुम्हें। अगर तुमने जिद्द की हो, अगर तुम तर्क में कुशल और पटु हो, तो कोई यह भी नहीं सिद्ध कर सकता कि सत्य है। तुममें श्रद्धा हो, स्वीकार हो, तो तुम यह बात मानकर चल सकते हो कि सत्य है। कैसे तुम मानोगे? क्योंकि आज तक किसी ने नहीं कहा कि सत्य क्या है।
जीसस को पूछा है सूली लगाने के पहले पांटियस पायलट ने-रोमन गवर्नर ने-जिसकी आज्ञा से जीसस को सूली हुई, सूली की सजा देने के बाद, सजा सुनाने के बाद पायलट ने जीसस की तरफ देखा और कहा कि एक प्रश्न मुझे भी पूछना है, मेरा निजी प्रश्न, सत्य क्या है? और जीसस जो जीवनभर बोलते रहे थे, जब भी किसी ने कुछ पूछा था तो उत्तर दिया था, कहते हैं, चुप खड़े रह गये। पायलट की
आंखों में झांका, लेकिन चुप रहे, बोले कुछ भी नहीं। बिना बोले सूली पर चढ़ गये। क्यों नहीं बोले? न बोलने का कारण है। जो प्रश्न पूछा था, उसका शब्दों में उत्तर नहीं हो सकता।
लाओत्सू ने कहा है, जो कहा जा सके वह सत्य न होगा। सत्य तो कहा ही नहीं जा सकता। और जो भी कहा जा सकेगा, कहने के कारण ही असत्य हो जाएगा। ___ जापान में एक बहुत बड़ा झेन फकीर हुआ-लिंग शू। सम्राट ने उसे बुलवाया था प्रवचन देने को। आया, सम्राट का निमंत्रण था, तो जरूर आया। सम्राट ने खड़े होकर प्रार्थना की, सत्य क्या है?
लिंग शू खड़ा हुआ मंच पर, उसने जोर से सामने रखी टेबल पीटी, सन्नाटा छा गया। सब लोग उत्सुक होकर बैठ गये। सबकी रीढ़ें सीधी हो गयीं। सम्राट भी बैठ गया कि शायद अब कोई महत्वपूर्ण बात कहने को है लिंग शू। और लिंग शू ने सन्नाटा न छोड़ा। क्षणभर रहा और बोला, प्रवचन पूरा हो गया। उतरा मंच से, बाहर चला गया।
सम्राट ने अपने वजीरों से कहा, यह किस तरह का प्रवचन हुआ? हम तो वर्षों प्रतीक्षा किये लिंग शू की-अब आता, अब आता, अब पहाड़ों से उतरता है; हम राह देखते-देखते थक गये और यह आदमी आया और टेबल पीटकर बोलता है, प्रवचन पूरा हो गया! यह बोला तो एक भी शब्द नहीं। __ उस मौन में कुछ कहा लिंग शू ने। उस मौन में ही कहा जा सकता है। जैसे जीसस ने पांटियस पायलट की आंखों में झांककर देखा और कुछ भी न कहा। लिंग शू ने और भी बड़ी करुणा की, उसने टेबल पीटी, ताकि कोई झपकी खा रहा हो, सोया हो, तो जग जाए। फिर क्षणभर को सन्नाटा रहा।
बुद्ध एक सुबह कमल का फूल हाथ में लिये हुए आए और उस दिन बोले नहीं रोज बोलते थे। प्रतीक्षा में बैठे हैं शिष्य, भिक्षु, श्रावक। फिर प्रतीक्षा भारी
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