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________________ अकेला होना नियति है बदल गए, रास्ते बदल गए, साज- सामग्री बदल गयी, आदमी वही का वही है। परिस्थिति बदल गयी, मनःस्थिति वही की वही है । इसलिए ये जो संदेश हैं, ये कभी भी बासे नहीं पड़ते, पुराने नहीं पड़ते । इन्हें पुनरुज्जीवित किया जा सकता है। इनमें से फिर तुम्हारे लिए ज्योति जल सकती है, फिर दीया प्रगट हो सकता है। इनसे तुम्हें फिर राह मिल सकती है। अपनी राह खोजो इन सूत्रों के सहारे । सुगत ने ठीक ही कहा है। जो ठीक से जा चुके, वही ठीक कह सकते हैं। जो उलझे हैं इस संसार में, वे तो जो भी कहेंगे वह ठीक नहीं हो सकता । रुग्ण स्वयं हैं, उनका स्वयं का उपचार नहीं हुआ। जो ठीक से इस संसार से मुक्त हो चुके हैं, जो इस संसार पर तैर गए कमलवत, जिनका अब आने का कोई उपाय नहीं रहा है, जिनकी आखिरी जाने की विदा आ गयी, जो सागर के तट पर खड़े हैं और सागर में उतरने को हैं— सुगत — और फिर कभी न लौटेंगे, उनकी बात ध्यानपूर्वक सुनना । उससे तुम्हारे जीवन में क्रांति आ सकती है । तुम्हारा जीवन भी सांसारिक न होकर संन्यास का जीवन हो सकता है। और यह क्रांति भीतरी है, खयाल रखना। तुम चाहे घर में रहो, दुकान में रहो, इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता । तुम्हें इतना दिखायी पड़ जाए कि इस जीवन में कुछ पाने योग्य नहीं, पाने योग्य कहीं भीतर है। और तुम उस भीतर की शोध में लग जाओ - विसोधये । और यह जो मार्ग बुद्ध ने कहा – एस मग्गो विसुद्धिया - यह मार्ग है विसोधन का, शुद्धि का आज इतना ही । 275
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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