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अकेला होना नियति है
अमीर की होगी; हारे की होगी, जीते की होगी, मौत निश्चित है। यह बड़ी अनूठी बात है कि इस जीवन में सिर्फ एक ही बात बिलकुल निश्चित है और वह मौत है । और सब बातें अनिश्चित हैं। हों भी, न भी हों ।
इस निश्चित मौत की याद दिलाने को बुद्ध कह रहे हैं इस कथा में, कि उस युवक को उन्होंने कहा कि तेरे केवल सात दिन बचे हैं। इससे तुम सात दिन का हिसाब मत रखना। उन्होंने सिर्फ इतनी बात कही कि युवक तेरी मौत निश्चित है। निश्चित का खयाल करना, कि बुद्ध ने उसकी मौत निश्चित बता दी कि यह निश्चित हो रही है, यह होने वाली है, ये बस सात दिन बचे हैं।
तुम्हारी भी मौत निश्चित है ! तब तुम इन सूत्रों को ठीक से समझ पाओगे।
यावं हि वनयो न छिज्जति अनुमत्तोपि नरस्स नारिसु । पटिबद्धमनो नु गव सो बच्छो खीरपकोव मातरि।।
कहा उस युवक को कि 'हे युवक ! जब तक पुरुष की स्त्री के प्रति कामवासना अणुमात्र भी शेष रहती है, तब तक वह वैसे ही बंधा रहता है, जैसा दूध पीने वाला बछड़ा अपनी माता से बंधा रहता है।'
इस जगत में समस्त कामनाओं के मूल में कामवासना है । और सारी वासनाएं गौण हैं। धन की आकांक्षा गौण है। धन आदमी चाहता इसीलिए है कि धन के माध्यम से सुंदर स्त्री, सुंदर पुरुष पा सकेगा। पद भी चाहता इसीलिए है कि पद की आड़ में फिर वासना के खूब खेल खेले जा सकेंगे। आदमी तो स्वर्ग तक इसीलिए चाहता है कि अप्सराएं उपलब्ध होंगी और हूरें उपलब्ध होंगी और गिल्में उपलब्ध होंगे। अगर हम आदमी की सारी वासनाओं में गौर से झांके तो सारी वासनाओं के पीछे छिपी हुई हम कामवासना पाएंगे। कामवासना मूल वासना है, शेष वासनाएं उसी की शाखाएं-प्रशाखाएं हैं। स्वभावत, धनी हो तो ज्यादा स्त्रियां इकट्ठी कर . सकता है। तुम पढ़ते ही हो कहानियां शास्त्रों में - राजाओं की हजारों स्त्रियां । गरीब आदमी तो एक ही स्त्री पाल ले तो मुश्किल में पड़ जाता है।
पुराने दिनों में, कितनी स्त्रियां हैं किसकी, इसी से उसके धन का हिसाब लगाया जाता था। इसलिए बढ़-चढ़कर भी संख्या लिखी है। कृष्ण की सोलह हजार स्त्रियां ! यह संख्या ज़रा बढ़-चढ़कर लगती है, नहीं तो कृष्ण पागल हो गए होते। यह संख्या कुछ जंचती नहीं । एक स्त्री पागल कर देने को काफी है, सोलह हजार, थोड़ा सोचो तो ! सोलह हजार स्त्रियों का तो हिसाब भी रखना मुश्किल हो जाएगा। दस - पांच साल बीत जाएंगे तब एकाध स्त्री का नंबर फिर आएगा । तब तक तो भूल ही चुके होओगे कि यह कौन है और कहां से आ गयी ! जरा सोचो तो कि सोलह हजार स्त्रियों में घिरे कृष्ण ! कितने ही पूर्ण अवतार रहे हों, पागलखाने में पहुंच गए होते। सोलह
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