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________________ धर्म तुम हो में जीते हैं, यथार्थ से उनका कभी कोई मिलन ही नहीं होता। उनकी आंखों में आकाश-कुसुम खिलते हैं, असली कुसुम नहीं। बुद्ध स्वप्नवादी नहीं हैं, परम व्यावहारिक हैं। लेकिन चार्वाक जैसे व्यवहारवादी भी नहीं हैं। उनका व्यवहारवाद अपने भीतर परम आदर्श की संभावना छिपाए हुए है। लेकिन वे कहते हैं, शुरू तो करना होगा जमीन पर पैर टेकने से। जिसके पैर जमीन में जितनी मजबूती से टिके हैं, वह उतनी ही आसानी से आकाश को छूने में समर्थ हो पाएगा। मगर यात्रा तो शुरू करनी पड़ेगी जमीन में पैर टेकने से। इसलिए जब कोई बुद्ध के पास आता है और ईश्वर की बात पूछता है, वे कहते हैं, व्यर्थ की बातें मत पूछो। अनेकों को तो लगा कि बुद्ध अनीश्वरवादी हैं, इसलिए ईश्वर के बाबत जवाब नहीं देते। यह बात सच नहीं है। बुद्ध कहते हैं, पहले जमीन में तो पैर गड़ा लो, पहले ध्यान में तो उतरो, पहले अंतस चेतना में तो जड़ें फैला लो, पहले तुम जो हो उसको तो पहचान लो, फिर यह पीछे हो लेगा। यह अपने से हो लेगा। यह एक दिन अचानक हो जाता है। जब जमीन में वृक्ष की जड़ें खूब मजबूती से रुक जाती हैं, तो वृक्ष अपने आप आकाश की तरफ उठने लगता है। एक दिन आकाश में उठे वृक्ष में फूल भी खिलते हैं, वसंत भी आता है। मगर वह अपने से होता है। असली बात जड़ की है। ___ तो बुद्ध बहुत गहरे में यथार्थवादी हैं, लेकिन उनका यथार्थ आदर्श को समाहित किए हुए है। वह आदर्श समन्वित है यथार्थ में। ____पांचवीं बात, गौतम बुद्ध विधिवादी नहीं, मानवीय हैं। एक तो विधिवादी होता है, जैसे मनु। सिद्धांत महत्वपूर्ण हैं, मनुष्य महत्वपूर्ण नहीं है। ऐसा लगता है मनु में, जैसे मनुष्य सिद्धांत के लिए बना है। मनुष्य की आहुति चढ़ायी जा सकती है सिद्धांत के लिए, लेकिन सिद्धांत में फेर-बदल नहीं की जा सकती। बुद्ध अति मानवीय हैं, ह्यूमनिस्ट। मानववादी हैं। वे कहते हैं, सिद्धांत का उपयोग है मनुष्य की सेवा में तत्पर हो जाना। सिद्धांत मनुष्य के लिए है, मनुष्य सिद्धांत के लिए नहीं। इसलिए बुद्ध के वक्तव्यों में बड़े विरोधाभास हैं। क्योंकि बुद्ध एक-एक व्यक्ति की मनुष्यता को इतना मूल्य देते, इतना चरम मूल्य देते हैं कि अगर उन्हें लगता है इस आदमी को इस सिद्धांत से ठीक नहीं पड़ेगा, तो वे सिद्धांत बदल देते हैं। अगर उन्हें लगता है कि थोड़े से सिद्धांत में फर्क करने से इस आदमी को लाभ होगा, तो उन्हें फर्क करने में जरा भी झिझक नहीं होती। लेकिन मौलिक रूप से ध्यान उनका व्यक्ति पर है, मनुष्य पर है। मनुष्य परम है। मनुष्य चरम है। मनुष्य मापदंड है। सब चीजें मनुष्य पर कसी जानी चाहिए। इसलिए बुद्ध वर्ण-व्यवस्था को न मान सके। इसलिए बुद्ध आश्रम-व्यवस्था को भी न मान सके। क्योंकि ये जड़ सिद्धांत हैं। बुद्ध ने कहा, ब्राह्मण वही जो ब्रह्म को जाने। ब्राह्मण-घर में पैदा होने से कोई ब्राह्मण नहीं होता। और शूद्र वही जो ब्रह्म
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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