________________
जुहो ! जुहो ! जुहो ! हम वापस न लौट जाएं तब तक यह प्यास जारी रहती है, प्राण पूछते ही रहते हैं— जुहो ? जुहो ?
तुमने पूछा है, 'मेरे भीतर एक प्यास है, बस इतना ही जानता हूं। किस बात की, यह साफ नहीं है। आप कुछ कहें ।'
मैंने यह कहानी कही; इस पर ध्यान करना। सभी के भीतर है— पता हो, न पता हो। होश से समझो, तो साफ हो जाएगी; होश से न समझोगे, तो धुंधली - धुंधली बनी रहेगी और भीतर-भीतर सरकती रहेगी। लेकिन यह पृथ्वी हमारा घर नहीं है। यहां हम अजनबी हैं । हमारा घर कहीं और है— समय के पार, स्थान के पार । बाहर हमारा घर नहीं है, भीतर हमारा घर है । और भीतर है शांति, और भीतर है सुख, और भीतर है समाधि। उसकी ही प्यास है।
आज इतना ही।
185