SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 192
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जुहो! जुहो! -जुहो! कृपा अपरंपार थी। इसीलिए यह भोज दे रहा हूं कि वह मेरे गुरु थे। सच्चे गुरु थे। उन्होंने मुझे उत्तर नहीं दिया और सदा मुझे मेरे ऊपर वापस फेंक दिया। सदा धक्का दे दिया मेरे भीतर कि जा वहां। धक्का खाते-खाते एक दिन मैं पहुंच गया। एक दिन भीतर से लपट की तरह उठी बात, सब रोशन हो गया। वह उनकी ही कृपा से हुआ है। उन्होंने मुझे कोई शिक्षा नहीं दी, लेकिन गुरु तो वे मेरे हैं। अब ध्यान रखना, शिक्षा देने से ही कोई गुरु नहीं होता। सत्य के निकट पहुंचाने से कोई गुरु होता है। और सत्य के निकट कैसे पहुंचोगे? अगर गुरु तुम्हें अपने में उलझा ले तो नहीं पहुंच पाओगे। ___ इसलिए सदगुरु की सदा चेष्टा होती है कि तुम उसमें न उलझ जाओ। वह तुम्हें धक्के देता रहता है, वह तुम्हें तुम पर फेंकता रहता है। ___अच्छा हुआ है कि तुम प्रश्न पूछना चाहते हो और प्रश्न बनता नहीं। शुभ हुआ 'और जो बनते हैं. वे पछने जैसे मालूम नहीं पड़ते। अब मैं क्या करूं?' . अब तुम इस खुजली को छोड़ो। अब तुम चुप रहो। अब जब भी तुम्हें प्रश्न पूछने की याद आए, याद करना कि मैंने कहा-चुप रहो; पूछो ही मत। होगा, एक दिन हो जाएगा। जिस दिन होगा, उस दिन तुम निश्चित मेरा धन्यवाद मानोगे। उस दिन तुम याद करोंगे कि मैंने तुम्हें उत्तर नहीं दिया था तो अच्छा किया था। उस दिन तुम समझोगे कि तुमने नहीं पूछा, वह भी अच्छा किया था। क्योंकि पूछो तो मुमुक्षा जिज्ञासा हो जाती है, नीचे गिर जाती है। __कुछ बातें हैं, जो कहने से नीचे गिर जाती हैं। उनकी ऊंचाई ऐसी है कि वे बिना कहे ही उस ऊंचाई पर होती हैं बोले कि चके। पांचवां प्रश्नः आपसे क्या छिपा है! भीतर कुछ हो रहा है, अहोभाग्य! समझ नहीं पड़ता है, आश्वस्त करें। अगर ठीक, तो फिर यह आंखमिचौनी कब तक? प्रणाम! पछा है रामपाल ने। - रामपाल से मेरा संबंध पुराना है, लंबे दिनों का है। और रामपाल ने शायद यह पहला ही प्रश्न पूछा है वर्षों में। जरूर हो रहा है, रामपाल तुम्हें ही पता नहीं है, मुझे भी पता है। तुम्हें पता चला, उससे पहले मुझे पता है। हो रहा है, आश्वस्त रहो। और जल्दी भी मत करो। क्योंकि कुछ बातें हैं जो धीरे-धीरे होती हैं। ये कोई मौसमी 179
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy