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________________ जुहो! जुहो! जुहो! नहीं करना है। यह तीसरा आर्य-सत्य है। औषधि, उपाय। और चौथा आर्य-सत्य है कि जब निदान हो गया, उपाय हो गया, कारण मिटा दिए गए, तो अवस्था है चौथी-सुख की अवस्था। समाज की दृष्टि से मार्क्स कहता है : साम्यवाद, जब समता हो जाएगी। और फ्रायड कहता है : मनो-स्वास्थ्य, जब मन संतुलित होगा, स्वस्थ होगा, ऊर्जावान होगा। __ ये बुद्ध के ही चार आर्य-सत्यों का उपयोग है। बुद्ध ने बड़ा विराट उपयोग किया, मार्क्स और फ्रायड का उपयोग बहुत संकीर्ण है। बुद्ध ने अस्तित्व के लिए प्रयोग किया। मार्क्स ने समाज के लिए, अर्थ-व्यवस्था के लिए। और फ्रायड ने मन के लिए, मनो-व्यवस्था के लिए। बुद्ध ने तो जो निवेदन किया है वह सारे अस्तित्व के लिए-दुख है, आदमी दुखी है, इससे बड़ा सत्य क्या होगा? सुखी आदमी मिलता कहां है? जो मुस्कुराते मिलते हैं, वे भी सुखी कहां हैं? अक्सर तो ऐसा होता है कि दुखी आदमी मुस्कुराहटें थोपे रहते हैं अपने चेहरों पर, यह दुख से अपने को छिपाए रखने का उपाय है। - सब मुस्कुराहटें झूठी हैं। हर मुस्कुराहट के पीछे आंसू छिपे हैं। खोखले हैं आदमी के सुख, भीतर दुख का अंबार लगा है। थोथे हैं आदमी के सुख, मुखौटे हैं, ऊपर से ओढ़ लिए चेहरे हैं, भीतर का असली चेहरा कुछ और ही है। लेकिन हम सब एक-दूसरे को धोखा देने में सफल हो जाते हैं। दूसरे तुम्हारा चेहरा देखते हैं, तुम्हें तो देख नहीं पाते, इसलिए हर आदमी के भीतर एक अड़चन पैदा हो जाती है। वह अड़चन यह होती है कि सब सुखी मालूम होते हैं, मैं ही दुखी हूं। वह देखता है कि फलां मुस्कुरा रहे हैं, ढिकां मुस्कुरा रहे हैं, देखो फलां पति-पत्नी कैसे मजे से चले जा रहे हैं! __ कभी इनके दर्शन इनके घर में किए हैं? अभी ये सज-संवरकर बाहर निकल आए हैं और बड़े प्रसन्न चले जा रहे हैं। सजने-संवरने के पहले घर में इनकी हालत देखी है? तुम्हें अपने ही घर की हालत पता है। मगर तुमने यह देखा कि तुम भी जब बाहर जाते हो तब तुम भी सज-संवर जाते हो। और तब तुम भी ऐसे दिखलाते हो कि सब सुख ही सुख है। तब तुम भी ऐसे ही दिखलाते हो; जैसा कि होता नहीं, सिर्फ कहानियों में पाया जाता है, कि सब सुख ही सुख है, बड़े आनंद में हैं। ऐसा ही ये भी दिखला रहे हैं। एक सूफी कहानी है कि एक आदमी बहुत-बहुत दुखी था और वह परमात्मा से रोज प्रार्थना करता है कि हे प्रभु, आखिर मैंने तेरा क्या बिगाड़ा है? इतना दुख तूने मुझे दिया! सारी दुनिया सुखी मालूम होती है एक मुझ ही को छोड़कर। अगर कभी कोई दुखी भी मिलता है तो इतना दुखी नहीं जितना मैं दुखी हूं। आखिर मैंने तेरे साथ क्या कसूर किया? एक रात उसने सपना देखा। सपने में देखा कि आकाश से परमात्मा बोला कि 167
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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