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एस धम्मो सनंतनो
संपत्ति संपत्ति नहीं होती। होती हो तो ही होती है। तुम लाख मानो, तुम लाख चेष्टा करो कि रेत से हम निचोड़ लें तेल, नहीं निचोड़ पाओगे। रेत में तेल हो तो निचुड़ आता, रेत में तेल है नहीं।
तुम कहते हो, 'मेरे पास सब है, लेकिन शांति नहीं।' __तो कुछ भी नहीं है। इस भ्रांति को छोड़ो। यह सब होने की भ्रांति तुम्हें अटका रखेगी। यह भ्रांति टूट जाए तो शांति की यात्रा शुरू हो सकती है। शांति की यात्रा में पहला कदम यही है कि अब तक जो भी कदम मैंने उठाये गलत दिशा में उठाये, अब इस दिशा में और कदम नहीं उठाने हैं।
तुम कहते, 'पूंजी है।'
पूंजी की परिभाषा तुम्हें मालूम? पूंजी का अर्थ होता है, जो खोयी न जा सके। जो मिली सो मिली। जो सदा तुम्हारी हो। जो छिन जाए, उसे पूंजी कहते हो? जिसे चोर चुरा ले जाएं, उसे पूंजी कहते हो? जिसका आज मूल्य हो, कल निर्मूल्य हो जाए, उसे पूंजी कहते हो? पूंजी तो वही है जो शाश्वत मूल्य रखती है। पूंजी तो भीतर की होती है, बाहर की नहीं होती। पूंजी तो कुछ बात ऐसी है कि मौत भी उसे नहीं छीन पाती। अग्नि उसे जलाती नहीं, शस्त्र उसे छेदते नहीं। लपटों में तुम्हारा शरीर जल जाएगा, तुम्हारी पूंजी अछूती बची रहेगी। धन पूंजी नहीं है, ध्यान पूंजी है।
तुम कहते हो, ‘पद है।'
जानने वालों ने तो परमात्मा को ही पद कहा है, परमपद कहा है। और सब पद तो धोखे हैं। जरा बड़ी कुर्सी पर बैठ गये, कहने लगे, पद है। छोटे बच्चों जैसी बातें हैं। छोटे बच्चे अक्सर खड़े हो जाते हैं बाप के पास, स्टूल पर खड़े हो जाते हैं, कुर्सी पर खड़े हो जाते हैं और कहते हैं, मैं आपसे बड़ा, मैं तुमसे बड़ा। कुर्सियों पर बैठकर कोई बड़ा होता है! कुर्सियां छिन जाने से कोई छोटा होता है! जो बड़प्पन, जो छोटापन कुर्सियों पर निर्भर हो, वह बड़प्पन नहीं, आत्मवंचना है। तुम सपने देख रहे हो। पूंजी तो एक है-आत्मा की। और पद एक है-परमात्मा का। और प्रतिष्ठा? उसी पूंजी में, उसी पद में ठहर जाओ तो प्रतिष्ठा है। प्रतिष्ठा शब्द बड़ा महत्वपूर्ण है। उसी में जड़ें जमा लो, कोई हिला न सके वहां से, कोई उपाय न हिला सके, कोई परिस्थिति न हिला सके, तो प्रतिष्ठा।
मैंने एक छोटी सी कहानी सुनी है।
दो हजार वर्ष पहले की बात। शत्रुओं ने यूनान के एक नगर पर विजय पायी और निवासियों को नगर छोड़ने की आज्ञा दी। यद्यपि उनकी वीरता से वे प्रभावित थे, बहुत प्रभावित थे। और इसी कारण उन्होंने इतनी सुविधा दी कि वे अपने साथ जो भी और जितना भी ले जा सकें, ले जाएं। पूरा नगर अपना-अपना सामान अपनी पीठ पर लादकर और उसके लिए रोता हुआ जो नहीं लादा जा सका-दूसरे नगर की ओर चलने लगा। बोझ से सभी की कमर झुकी जा रही थी, पांव लड़खड़ा रहे थे, प्यास
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