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________________ एस धम्मो सनंतनो के कर्म की जो परिधि है—करते. उठते, बैठते, चलते. बात करते, मिलते. होश रखे। फिर धीरे-धीरे यही होश केंद्र पर आने लगेगा। फिर धीरे-धीरे आंख बंद करके भीतर होश का दीया जलता रहे, उसी दीए के साथ तुम एक हो जाओगे, होशपूर्वक स्वयं में प्रविष्ट कर जाना सम्यक-समाधि। इसको आर्य-अष्टांगिक मार्ग बुद्ध ने कहा। बुद्ध ने कहा, भिक्षुओ! मग्गानटुंगिको सेट्ठो। अगर श्रेष्ठ मार्ग की ही बात करनी है, अरे तो पागलो, आर्य-अष्टांगिक मार्ग की बात करो, इतना तो तुम्हें समझाया है। यह तुम किन मार्गों की बात करते हो? सच्चानं चतुरो पदा। अगर सच्चे, श्रेष्ठ लोगों की बात करनी है, तो चार आर्य-सत्यों की बात करो, जो मैंने तुम्हें बार-बार समझाए हैं : कि दुख है, कि दुख के कारण हैं, कि दुख के कारणों से मुक्त होने के उपाय हैं, कि दुख से मुक्त होने की अवस्था है, दुख-निरोध की अवस्था है, निर्वाण है, इनकी चर्चा करो। विरागो सेट्ठो धम्मानं। अगर श्रेष्ठ धर्म की बात करनी है तो विराग की बात करो, यह क्या राग की बात कर रहे हो! विरागो सेट्ठो धम्मानं। वैराग्य श्रेष्ठ धर्म है। विराग के गीत गाओ, एक-दूसरे को विराग समझाओ, एक-दूसरे के जीवन में विराग लाओ, एक-दूसरे की धीरे-धीरे समझ इतनी गहरी करो कि जहां-जहां राग के बंधन हैं, टूट जाएं, विराग की स्वतंत्रता उपलब्ध हो। द्विपदानंच चक्खुमा। और यह आखिरी बात तो बड़ी अदभुत है। बुद्ध कहते हैं, सुंदर स्त्री-पुरुषों की बात कर रहे हो? सौंदर्य तो केवल एक घटना में घटता है : 150
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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