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________________ एस धम्मो सनंतनो तरह सोया है। ये सब सोने की ही दशाएं हैं। सब दशाएं सोने की दशाएं हैं। सब स्थितियां निद्रा की स्थितियां हैं। बुद्धत्व कोई स्थिति नहीं है, सारी स्थितियों से जाग का नाम है। जो जाग गया और जिसने जान लिया कि मैं अरूप, निराकार; जिसने जान लिया कि न मेरा कोई रूप, न मेरा कोई आकार, न मेरी कोई देह | बुद्ध ने ठीक ही कहा कि न मैं देव हूं, न मैं गंधर्व हूं, न मैं यक्ष हूं, न मैं मनुष्य हूं, न मैं पशु, न मैं पौधा, न मैं पत्थर - मैं बुद्ध हूं । बुद्धत्व सबकी संभावना है, क्योंकि जो सोया है, वह जाग सकता है। सोने में ही यह बात छिपी है। तुम सोए हो, इसमें ही यह संभावना छिपी है कि तुम चाहो तो जाग भी सकते हो। जो सो सकता है, वह जाग क्यों नहीं सकता? जरा प्रयास की जरूरत होगी। जरा चेष्टा करनी होगी। एक और छोटी कहानी है— एक रात्रि जब सारा काशीनगर सोया था, एक युवक था यश, वह जाग रहा था। वह अति चिंता में डूबा था । धनी था, समृद्ध था, लेकिन जैसी धनी और समृद्धों को चिंता होती है, वैसी चिंता थी । चिंता इतनी बढ़ गयी थी कि आत्मघात का विचार कर रहा था। चिंतित, अशांत, संतापग्रस्त उसे नींद नहीं थी । वह दुख में डूबा उठा और नगर से बाहर चला; उसने सोचा, आज अपने को समाप्त ही कर लूं । सार भी क्या है ! यही पुनरुक्ति, यही रोज चिंता, यही रोज दुख, और मिलता तो कुछ भी नहीं, हाथ कुछ आता नहीं। रोज-रोज दुख भोगो, इससे बेहतर समाप्त हो जाओ। सत्तर-अस्सी साल तक इसी - इसी घेरे में दोहरते रहना, कोल्हू में जुते बैल की तरह चलते रहने का क्या प्रयोजन है ! वह नगर के बाहर आया, नगर- सीमांत पर बुद्ध का निवास था, वे एक वृक्ष के नीचे बैठे थे। आधी रात थी, चांद निकला था। वह युवक तो आत्महत्या करने जा रहा था। ऐसे ही आकस्मिक उसकी दृष्टि में बुद्ध बैठे दिखायी पड़ गए। उसने ऐसा शांत आदमी नहीं देखा था। एक क्षण को तो भूल ही गया अपनी चिंताएं, इस शांति का ऐसा छापा पड़ा, एक क्षण को तो भूल ही गया कि जिंदगी में दुख है । यह जो सुख का सागर जैसा आदमी बैठा था, इसके सुख की भनक पड़ी। एक क्षण को तो भूल ही गया कि मैं आत्महत्या करने आया हूं। अब बुद्ध के पास जाओ तो आत्महत्या करने का खयाल रह सकता है ! आकस्मिक ही आ गया था, कोई सोचकर आया न था, संयोग की बात थी कि बुद्ध थे वहां और वह राह से गुजरता था। खिंचा चला आया जैसे चुंबक से लोहा खिंचा चला आता है। जैसे ही बुद्ध को देखा उस पूरे चांद की रात में, इस पूरे मनुष्य को देखा, एक चांद आकाश में और एक चांद जमीन पर - और आकाश के चांद को लजाते देखा होगा - चला आया, मंत्रमुग्ध । जैसे बीन सुनकर सांप नाचने लगता है, ऐसे ही बुद्ध की इस मौन अवस्था का उस पर प्रभाव हुआ होगा । 106
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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