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एस धम्मो सनंतनो
मैं भी शास्त्र बन जाऊंगा। जब जा चुका होऊंगा तो शास्त्र बन जाऊंगा। फिर नौका न बनेगी। शास्त्र डुबाता है, उबारता नहीं। जो मृत है, वह जीवित को कैसे उबारेगा? जो स्वयं मृत है, वह जीवित को कैसे उद्धार करेगा? शास्त्र बोझ बन जाता है, सिर भारी हो जाता है। पांडित्य मिलेगा शास्त्र से, प्रज्ञा नहीं मिलेगी। जानने लगोगे बहुत
और जानोगे कुछ भी नहीं। जानते मालूम पड़ने लगोगे और अज्ञानी के अज्ञानी बने रहोगे। अज्ञान ज्ञान के वस्त्र पहन लेगा, लेकिन विसर्जित नहीं होगा।
और अज्ञान जब ज्ञान के वस्त्र पहन लेता है, तब और भी खतरनाक हो जाता है। यह तो ऐसे ही हुआ कि बीमारी ने जैसे स्वास्थ्य के वस्त्र पहन लिए। फिर तो बीमारी का पता ही नहीं चलता। फिर तो तुम औषधि की खोज भी नहीं करते। फिर तो तुम चिकित्सक के पास जाओगे क्यों, तुम स्वयं ही जानते हो।
इसलिए बुद्ध के पास पंडित नहीं आते। मेरे पास भी नहीं आते। पंडित आए क्यों? पंडित तो सोचता है, वह स्वयं ही जानता है।
तो पांडित्य नौका नहीं बनता, गले का पत्थर हो जाता है। उसके कारण आदमी डूबता है, उबरता नहीं। शास्त्र नहीं उबार सकता, कैसे उबारेगा? कागज की पोथी, स्याही के चिह्न, कैसे उबारेंगे? उससे ज्यादा मूल्यवान तो यह जो जीवन का विराट शास्त्र है, यह है। वृक्षों के हरे पत्ते कहीं ज्यादा जीवंत हैं। पक्षियों के गीत, खिले हुए फूल कहीं ज्यादा जीवंत हैं। इनसे सुनना, तो शायद कुछ समझ में आ जाए। मुर्दा किताब को कान के पास रखकर सुनोगे, वहां से कोई आवाज थोड़े ही आएगी। और मुर्दा किताब में तुम जो पढ़ लोगे, वह तुम्हारा ही है। तुम जो पढ़ लोगे, वह शास्त्र तुम्हें नहीं दे रहा है, तुम्हीं शास्त्र में डाल रहे हो। तुम अपने को ही पढ़ लोगे। तुम अपने से ज्यादा पढ़ भी कैसे सकते हो! तुम जो जानते हो, वही शास्त्र में से तुम निकाल लोगे। और शास्त्र तो बड़ा अवश है, कुछ कह भी न सकेगा, रोक भी न सकेगा। यह भी न कहेगा कि ऐसी ज्यादती न करो।
शास्ता नौका बनता है, शास्त्र नहीं। जब शब्द किसी जीवित शून्य से निकलते हैं, और तुमने उन्हें सुना, तो जरूर ले जाएंगे पार। जब शब्द धड़कते हैं, प्राणवान होते हैं, जब शब्दों के भीतर बोध का दीया जला होता है, तब। शास्त्र तो मिट्टी का दीया है, ज्योति तो जा चुकी। बुद्ध तो विदा हुए, मिट्टी का दीया पड़ा रहा गया, इसे पूजते रहो जन्मों-जन्मों तक, इससे तुम्हारी आंख न खुलेगी, इसमें ज्योति ही नहीं है। ज्योति से ज्योति जले। जब किसी की ज्योति जली होती है, तुम अगर उसके पास जाओ तो तुम्हारी ज्योति भी जल सकती है। पास जाने से ही जल सकती है। कुछ और करना ही क्या है!
जब तुम एक बुझे दीए को जलते दीए के पास लाते हो, पास लाते हो, एक घड़ी आती है कि दोनों की बातियां जब बहत करीब आ जाती हैं तो एक छलांग, जलते दीए से ज्योति बुझे दीए में उतर जाती है। और मजा यह है कि जलते दीए का कुछ
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