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उठने में ही मनुष्यता की शुरुआत है
___ एक आदमी ने एक दुकान से सर्राफ की दुकान से—एकदम हीरे-जवाहरातों पर मुट्ठी बांध ली और भागा। पकड़ा गया—भरी दोपहरी, बीच 'बाजार! मजिस्ट्रेट भी उससे हैरान हुआ, उसने कहा कि तू कैसा पागल है, चोर हमने भी देखे, रोज ही आते हैं, मगर कोई भरी दोपहरी में! जहां ग्राहक बैठे, दुकान चल रही, लोग बैठे, रास्ता चल रहा, वहां तू एकदम घुस गया और हीरे-जवाहरात लेकर भाग गया। यह कोई ढंग है! उस चोर ने कहा, मुझे हीरे-जवाहरात के सिवाय कुछ और दिखायी ही नहीं पड़ रहा था। जैसे ही मुझे हीरे-जवाहरात दिखायी पड़े, फिर मुझे कोई नहीं दिखायी पड़ा—न दुकानदार, न ग्राहक, न रास्ता, न चलते हुए लोग। ___ जब वासना बहुत प्रगाढ़ हो तो तुम्हें वही दिखायी पड़ता है जो तुम्हारी वासना. तुम्हें दिखाती है। शेष सब अंधेरे में हो जाता है। शेष सब पर पर्दा पड़ जाता है। उस युवक को बुद्ध दिखायी नहीं पड़े। उसने भगवान को देखा ही नहीं। - कभी-कभी भगवान तुम्हारे पास से भी गुजर जाएं और हो सकता है तुम्हें दिखायी न पड़ें। बहुत बार गुजरे ही होंगे। क्योंकि अनंत काल में ऐसा तो नहीं हो सकता कि तुम कभी बुद्धों के करीब न आए होओ। ऐसा तो नहीं हो सकता कि कभी कोई जिनत्व को उपलब्ध व्यक्ति तुम्हारे पास से न गुजरा हो। ऐसा तो नहीं हो सकता कि कभी कोई कृष्ण, कभी कोई क्राइस्ट, कोई मोहम्मद, कोई जरथुस्त्र तुम्हारे गांव से न गुजरा हो, तुम्हारे पड़ोस में न ठहरा हो। ऐसा हो ही नहीं सकता। तुम कोई नए तो नहीं हो। अति प्राचीन हो, सनातन हो। सदा-सदा से यहां रहे हो। जरूर बहुत बार ये मौके आए होंगे। लेकिन तुमने देखा नहीं, यह सच है। अब तो तुम्हें याद भी नहीं। तुम्हें पहचान भी नहीं।
आज भी तुम्हारे पास से बुद्धपुरुष गुजरें तो शायद ही तुम देख पाओ। तुम्हें वही दिखायी पड़ेगा जो तुम देख सकते हो। तुम अगर धन के दीवाने हो तो धन दिखायी पड़ेगा। तुम अगर पद के दीवाने हो, पद दिखायी पड़ेगा। तुम्हारी आंखें बस उसी दिशा में देखती हैं जहां तुम्हारी वासना त्वरा से भागी जा रही है। शेष सब अंधेरा हो ‘जाता है। तो हम करीब-करीब निन्यानबे प्रतिशत अंधे हैं। बस एक प्रतिशत हमें दिखायी पड़ता है। और इसीलिए अक्सर ऐसा हो जाता है, कि शुभ अवसर आते हैं और चूक जाते हैं।
इस युवक की हालत को तुम इस युवक की ही हालत मत समझना। बहुत मौकों पर तुम्हारी भी यही हालत है। ऐसा मत सोचना कि बेचारा! यह कहानी तुम्हारी है। यह आदमी की कहानी है। ये सारी कहानियां आदमी की हैं। इन कहानियों को ऐसा सोचकर मत टाल देना कि हां, किसी को ऐसा हुआ होगा। ऐसा मनुष्य को होता है। ऐसा हर मनुष्य को हो रहा है।
उसने भगवान को देखा ही नहीं। तुमने कभी इस अनुभव से गुजरकर निरीक्षण किया है ? रास्ते से तुम चले जा