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गीली लकड़ी में आग पकड़ाने की कोशिश करे। उस लकड़ी का आग पकड़ना ही मुश्किल होगा, जलकर भस्म में, विभूति में रूपांतरित हो उठना तो दूर की बात रही।
इन घटनाओं के माध्यम से, इन घटनाओं से जुड़ी गाथाओं के माध्यम से हमारे जीवन में भी क्रांति की चिनगारी पड़ सकती है। और एक चिनगारी भी पर्याप्त है लपट बन जाने के लिए, धम्म (धर्म) के कुंदन को प्रगट कर देने के लिए। धम्म की कहीं तलाश थोड़े ही करनी है, वह तो है ही, सदा से—एस धम्मो सनंतनो-वह हमारा निर्माण नहीं केवल अनावरण है। केवल अ-धम्म के उस कूड़े-कचरे को जला डालना है जिसने धम्म के स्वर्ण-शिखरों को ढंक रखा है।
ओशो के ये प्रवचन इसी आशय से, इसी दिशा में किए गए प्रयास हैं, कि कैसे हम भी साहस जुटा सकें, भरोसा करके अपने हृदयों के कपाट खोल सकें कि कोई चिनगारी वहां भी आ पड़े और एक लपट बन जाए, जो सारे ही मत व शुष्क हो चुके झाड़-झंखाड़ व घास-पात को जला डाले-ताकि उसी राख के पीछे से वह प्रगट हो सके जो सदा से है।
एस धम्मो सनंतनो।
स्वामी योग प्रताप भारती (सच्चा बाबा)