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________________ क था ऐसी है कि जब गौतम बुद्ध को ज्ञान हुआ, निर्वाणोपलब्धि हुई, तो उसके बाद वे कुछ भी बोलने को राजी न थे-वे चुप ही रह जाना चाहते थे, सदा-सदा के लिए। क्योंकि उन्हें लगा कि जो मिला था, जो अनुभूति हुई थी, वह इतनी विराट थी, इतनी अनिर्वचनीय थी कि उसे शब्दों में ढालने का कोई उपाय ही नहीं हो सकता था।....ओशो बताते हैं कि परम अनुभव के बाद अधिकांशतः यही दशा होती है खोजी की। इसीलिए कई साधना-मार्ग तो ऐसे हैं जिनमें साधना-काल से ही ऐसे उपाय किए जाते हैं कि साधक के भीतर खोज के साथ-साथ, जो मिला उसे बांटने का भाव प्रगाढ़ होता चले-ताकि परम अनुभव के बाद सारी विवशताओं-असाध्यताओं का एहसास होते हुए भी वह व्यक्ति प्रयास करे ही करे अपनी अनुभूति को बांटने का, उसे शब्द देने का।... कथा आगे कहती है कि काफी तर्क-वितर्क के बाद ही देवतागण राजी कर सके थे गौतम बुद्ध को बोलने के लिए। __ आज जो उनके वचनों से परिचित हैं, वे जानते हैं कि गौतम बुद्ध का न बोलना कितना गरीब छोड़ गया होता मनुष्य जाति की आध्यात्मिक विरासत को; मनुष्यता के बगीचे में न जाने कितने चैतन्य के फूल खिलने से रह गए होते, और मनुष्य की चेतना वहां न होती जहां वह आज है। गौतम बुद्ध के वचनों की सार्थकता समय के साथ-साथ घटी नहीं, बढ़ी है।
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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