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ऊर्जा का क्षण-क्षण उपयोग : धर्म
यह कैसा प्यार कगार से जो छूट चली मझधार से तू किस याचक को दाता गुन सुधि भूली गहरे नीर की। सुन, कहती लहर झकोर कर तू अड़ी रह गयी यहीं अगर जाएगा पल में ज्वार उतर
फिरते ही सांस समीर की ज्वार आता है। मछली सागर की लहर पर चढ़ी किनारे पर आ जाती है। लेकिन ज्वार आ भी नहीं पाया कि उतरना शुरू हो जाता है। मछली अगर किनारे को ही पकड़कर रह जाए, तो मझधार से नाता छूट जाता है। और थोड़ी ही देर में, जैसे ही हवा का रुख बदलेगा, सागर तो उतर जाएगा वापस, तड़फती रह जाएगी मरुस्थल में रेत में तड़फती रह जाएगी। वैसी ही दशा मनुष्य की है।
ओ मछली सरवर तीर की यह कैसा प्यार कगार से जो छूट चली मझधार से तू किस याचक को दाता गुन सुधि भूली गहरे नीर की सुन, कहती लहर झकोर कर तू अड़ी रह गयी यहीं अगर जाएगा पल में ज्वार उतर
फिरते ही सांस समीर की बुद्धपुरुषों के वचन सिर्फ तुम्हें झकझोर कर इतना ही कहते हैं-किनारे को पकड़ मत लेना, मझधार तुम्हारा गंतव्य है। .
आज इतना ही।
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