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________________ ऊर्जा का क्षण-क्षण उपयोग : धर्म काम सुविधा से चलता है। मैं उनकी बेहोशी में ही घात मारता हूं। उन्हें पता चल जाए कि मैं हूं, तो वे सजग हो जाएंगे। मेरा न होना ही मेरे लिए सुविधापूर्ण है। शैतान ने कहा, वस्तुतः मैंने अपने कुछ शागिर्द छोड़ रखे हैं, जो खबर फैलाते रहते हैं कि शैतान वगैरह कुछ भी नहीं। है ही नहीं। यह सब खयाल है। मन का भ्रम है। आदमी का भय है। शैतान है नहीं। लोग निश्चित हो जाते हैं, मुझे सुविधा हो जाती है। बुद्ध यह कह रहे हैं, 'वह मेरे पास नहीं आएगा—ऐसा सोचकर पाप की अवहेलना न करे।' ____ क्योंकि तब तुम बेहोश हो जाते हो, जब अवहेलना करते हो। तब तुम सो जाते हो। जब तुम्हें पता है कि चोर आएगा ही नहीं, तुम निश्चित सो जाते हो। तुम्हारी निश्चितता में ही चोर के लिए सुविधा है। ____ जागे रहो! होश को जगाए रहो! दीए को जलाए रहो! क्योंकि एक-एक बूंद से जैसे घड़ा भर जाता है ऐसे ही छोटे-छोटे पापों से आदमी के पूरे प्राण भर जाते हैं। ___वह मेरे पास नहीं आएगा-ऐसा सोचकर पुण्य की अवहेलना न करे। जैसे पानी की बूंद-बूंद गिरने से घड़ा भर जाता है, वैसे ही धीर थोड़ा-थोड़ा संचय करते हुए पुण्य को भर लेता है।' तो न तो पाप की अवहेलना करे कि मेरे पास नहीं आएगा, न पुण्य की अवहेलना करे कि मेरे पास नहीं आएगा। ऐसे लोग हैं, मैं उन्हें जानता हूं, अगर उनसे कहो-वे पूछते हैं, क्या हम शांत हो सकेंगे? मैं उनसे कहता हूं, निश्चित हो सकेंगे-वे कहते हैं, हमें भरोसा नहीं! हमें विश्वास नहीं आता कि हम शांत हो सकेंगे। अब उन्होंने एक दीवाल खड़ी कर ली। अगर तुम्हें भरोसा ही न आए कि तुम शांत हो सकोगे, तो तुम शांत होने की तरफ कदम कैसे उठाओगे? तुमने एक नकारात्मक दृष्टि बना ली। तुमने निषेध का स्वर पकड़ लिया। थोड़े विधायक बनो। मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं, यह तो हमसे हो ही न सकेगा, यह असंभव है। असंभव? तुमने प्रयोग करके भी नहीं देखा है। संभव बनाने की चेष्टा तो करो पहले, हार जाओ तब असंभव कहना। तुमने कभी चेष्टा ही नहीं की, चेष्टा के पहले कहते हो असंभव है, तो असंभव हो जाएगा। तुम्हें तो कम से कम असंभव हो ही जाएगा, तुम्हारी धारणा ही तुम्हें आगे न बढ़ने देगी। उत्साह चाहिए। भरोसा चाहिए। उल्लास चाहिए। श्रद्धा चाहिए कि हो सकेगा, तो होता है। क्योंकि अगर एक मनुष्य को हो सका, तो तुम्हें क्यों न हो सकेगा? बुद्ध को हो सका, तो तुम्हें क्यों न हो सकेगा? जो बुद्ध के पास था, ठीक उतना ही लेकर तुम भी पैदा हुए हो। तुम्हारी वीणा में और बुद्ध की वीणा में रत्तीभर का फासला नहीं है। भला तुम्हारे तार ढीले हों, थोड़े कसने पड़ें। या तुम्हारे तार थोड़े ज्यादा कसे हों, थोड़े ढीले करने पड़ें। या तुम्हारे तार वीणा से अलग पड़े हों और उन्हें वीणा पर बिठाना पड़े। लेकिन तुम्हारे पास ठीक 75
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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