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ऊर्जा का क्षण-क्षण उपयोग : धर्म
लेकिन तुम जरा सोचो, सुख जैसी बात इतनी मुफ्त में मिल सकती है ? इतनी सस्ती मिल सकती है? जरूर कहीं कोई धोखा हो रहा है। हाथ खींच लो अपना । सुख पाने के लिए क्षमता अर्जित करनी होगी ।
गहन व्यथा के बाद हर्ष का नव नर्तन है
पीड़ा से गुजरना होगा। क्योंकि पीड़ा निखारती है।
प्रसव पीर के पार नवल शिशु का दर्शन है
छोटा बच्चा पैदा होता है, नया जीवन का आविर्भाव होता है, तो मां बड़ी पीड़ा गुजरती है। इस पीड़ा से बचना चाहो तो प्लास्टिक के बच्चे मिल सकते हैं। खिलौने रखकर बैठ जाओ, झुठला लो अपने को ।
पर उन झूठों में समय व्यर्थ ही जाएगा, अवसर ऐसे ही खो जाएगा। क्षणभर को पाप ऐसी प्रतीति करा देता है कि सुख मिल रहा है। इसलिए पुण्य की कसौटी यही है कि जो ठहरे, वही सच है । जो क्षणिक हो, वह धोखा है ।
जिंदगी जामे- ऐश है लेकिन
फायदा क्या अगर मुदाम नहीं
अगर कोई ऐसा सपने जैसा सुख का प्याला सामने आता हो और हाथ पहुंच भी न पाएं और खो जाता हो, थिर न होता हो, तो फायदा क्या अगर मुदाम नहीं ? तो इसे जीवन की कसौटी बना लेनी चाहिए कि जो ठहरे, जो रुके, जो शाश्वत बने, वही सुख है। जो क्षण को झलक दिखाए, सपने में उतरे और खो जाए, आंख खुलते ही ओर-छोर न मिले, वह सिर्फ धोखा है । वह मायाजाल है।
'मनुष्य यदि पुण्य करे तो पुनः पुनः करे । '
जैसे पाप की पुनरुक्ति से स्वभाव बनता है, वैसे पुण्य की पुनरुक्ति से भी स्वभाव बनता है। दुख को ज्यादा स्वभाव मत बनाओ। अन्यथा दुखी होते जाओगे। हां, अगर दुखी ही होने का तय किया हो, तब अलग बात! सुख को स्वभाव बनाओ। जितने सुख के अवसर आएं उनको खोओ ही मत, उनकी पुनरुक्ति करो। उनको बार-बार स्मरण करो, उनको बार-बार खींचकर ले आओ जीवन में फिर । सुबह को दोहराओ, रोशनी को पुनरुक्त करो, प्रभु की चर्चा करो। और जहां-जहां से सुख मिलता हो वहां-वहां बार-बार, दुबारा - दुबारा खोदो । ताकि तुम्हारी सारी ऊर्जा धीरे-धीरे सुख की दिशा में प्रवाहित होने लगे ।
'जब तक पाप पकता नहीं— उसका फल नहीं मिलता - तब तक पापी पाप को अच्छा ही समझता है। लेकिन जब पाप पक जाता है, तब उसे पाप का पाप दिखायी देता है।'
पाप का पता चलता है उसके फल में । पुण्य का भी पता चलता है उसके फल में | इसलिए जीवन को एक निरंतर शिक्षण समझो। जिन-जिन चीजों के फल पर तुम्हें सुख मिला हो, उन्हें दोहराओ। और जिन-जिन चीजों के फल पर तुम्हें दुख
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