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________________ एस धम्मो सनंतनो मेरा संन्यास ऐसा संन्यास नहीं है। मेरा संन्यास विधायक है। तुम जहां हो वहीं तुम्हें सुंदर और सुंदरतम होते जाना है। जहां हो, वहीं तुम्हें प्रेमपूर्ण और प्रेमपूर्ण होते जाना है। तुम जहां हो, जो तुम कर रहे हो, उससे तुम्हें उखाड़ना नहीं। तुम्हारी भूमि से तुम्हारी जड़ें तोड़नी नहीं। और तुम्हारी छाया में जो जी रहे हैं, उनकी छाया छीननी नहीं। इसलिए जाओ! आखिरी प्रश्न: चेतना और चैतन्य ने पूछा है। आपके स्वास्थ्य को देखकर हमारे हृदय द्रवित हो जाते हैं। इस परिस्थिति में विधायक दृष्टि साथ नहीं दे पाती। कृपया राह बताएं! स्वा भा विक है। मुझसे लगाव बनता है तो मेरे शरीर से भी लगाव बन जाता है। क्योंकि अभी तुम्हें यह कठिन है, मुझमें और मेरे शरीर में फासला करना। कठिन है, क्योंकि अभी तुम अपने भीतर भी अपने में और अपने शरीर में फासला नहीं कर पाए हो। जो तुम्हारे भीतर नहीं हुआ है, वह तुम मेरे भीतर भी न कर पाओगे। गणित सीधा-साफ है। एक ही उपाय है कि तुम अपने भीतर शरीर में और अपने में फासला करना शुरू करो। में बिलकुल स्वस्थ हूं। शरीर के संबंध में कुछ नहीं कह सकता-मेरे संबंध में कहता हूं, मैं बिलकुल स्वस्थ हूं। लेकिन शरीर के अपने नियम हैं। शरीर का अपना ढंग-ढांचा है। वह अपनी राह चलेगा। और शरीर को मरना है, तो रुग्ण रह-रहकर वह अभ्यास करेगा। उसे जाना है, उसे विदा होना है। तो वह अचानक तो विदा नहीं हो सकता। धीरे-धीरे क्रमशः विदा होगा। __ मुझे देखो। शरीर को भूलो। शरीर से ज्यादा मोह मत बनाओ। बनता है, स्वाभाविक है। उसकी निंदा नहीं है। लेकिन अपने को जगाओ। क्योंकि तुम्हारे मोह बनाने से सिर्फ दुख होगा तुम्हें। किसके रोने से कौन रुका है कभी यहां जाने को ही सब आए हैं, सब जाएंगे चलने की ही तो तैयारी बस जीवन है कुछ सुबह गए कुछ डेरा शाम उठाएंगे जाना तो होगा। तो शरीर खबरें देने लगता है कि जाएगा। सभी को जाना होगा। इस सत्य को स्वीकार कर लो। इसके साथ बहुत जद्दोजहद करने की जरूरत नहीं है। पीड़ा हो, तो जागने की चेष्टा करो। दुख हो, तो समझने की कोशिश करो, कहीं 264
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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