SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 212
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महोत्सव से परमात्मा, महोत्सव में परमात्मा हैं। उनकी भी संभावना उतनी ही महान है, जितनी तुम्हारी है। ___ 'समय-समय पर आपसे कई भिन्न-भिन्न वक्तव्य, परस्पर विरोधी वक्तव्य सुने हैं, लेकिन उनके संबंध में कहीं कोई प्रश्न मेरे मन में नहीं उठा। और उनके बावजूद आप मेरी दृष्टि में और हृदय में सदा-सर्वदा एक और अखंड बने रहे।' उन विरोधी वक्तव्यों के बावजूद अगर तुम्हारे हृदय में बना रहा, तो ही बने रहने में कुछ सार है। अगर मैं तुम्हें तर्कयुक्त लगू, तुम्हारे बंधे-बंधाए तर्क की सीमा में बंधा हुआ लगू, फिर तुम मुझसे राजी हो जाओ, तो वह दोस्ती कुछ बहुत गहरी नहीं। वह केवल विचार का नाता है। वह नाता कभी भी टूट सकता है। मेरे विचार बदल जाएं, या तुम्हारे बदल जाएं, वह टूट जाएगा। और विचार तो रोज बदलते रहते हैं। विचार का कोई भरोसा! विचार पर भरोसा तो ऐसे है, जैसे किसी ने सागर की लहरों पर भवन बनाने की आकांक्षा की। विचार तो बड़े चंचल हैं। मन तो मौसम सा चंचल है सबका होकर भी न किसी का अभी सुबह का, अभी शाम का अभी रुदन का. अभी हंसी का मन तो मौसम सा चंचल है 'मन के सहारे अगर तुम मेरे साथ रहे, तो ज्यादा देर चलना न होगा। यह दोस्ती थोड़ी देर की रहेगी। रास्ते पर दो राहगीर मिल गए, फिर मेरा रास्ता अलग हो गया, फिर तुम्हारा रास्ता अलग हो गया। मिले, थोड़ी दूर को साथ चल लिए, फिर बिछुड़ गए। प्रेम ऐसी कुछ बुनियाद है कि शाश्वत हो सकता है। मृत्यु भी उसे मिटाती नहीं। जीवन तो उसे डगमगा ही नहीं सकता, मौत भी उसे नहीं डगमगा पाती। बुद्ध की मृत्यु करीब आयी। उन्होंने घोषणा कर दी कि आज वे विदा हो जाएंगे शरीर से। आनंद बहुत रोने-चीखने लगा। लेकिन वह चकित हुआ कि बुद्ध का एक जो दूसरा शिष्य-सुभूति–एक वृक्ष के नीचे शांत बैठा है। आनंद ने उससे कहा, तुम्हें एक खबर नहीं मिली? किसी ने बताया नहीं? भगवान आज देह छोड़ देंगे! तुम रो नहीं रहे! तुम होश में हो? तुम्हारी आंखें गीली नहीं! फिर कभी मिलन न होगा, फिर कभी उनके ये सदवचन सुनने को न मिलेंगे! फिर कौन सिखाएगा यह सदधर्म? शास्ता खोया जाता है। सुभूति ने कहा, जिस शास्ता से मेरा संबंध है, उसके खोने का कोई उपाय नहीं। जिससे मेरा संबंध है, उसकी मौत नहीं हो सकती। वह फिकर मैंने पहले ही कर ली है, आनंद। तूने कुछ गलत से संबंध बना लिया। विचार से मेरा कुछ लेना-देना नहीं। मेरा संबंध गहरा है विचार से। हम साथ ही हैं। अब हम अलग नहीं हो सकते। अलग होने का कोई उपाय नहीं। आनंद ने बुद्ध को आकर कहा। बुद्ध ने कहा, सुभूति ठीक कहता है, आनंद। 197
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy