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________________ एस धम्मो सनंतनो मेरे मन में ईसा के प्रति श्रद्धा के भाव आरोपित किए गए, फिर जब मैंने सोच-विचार किया, समझा-बूझा, तो जीसस की बातें मुझे ठीक न मालूम पड़ीं। क्योंकि बहुत भाव-प्रवण मालूम पड़ती हैं, तर्क की कमी है। तो ईसा से तो मैं मुक्त हो गया। लेकिन जैसे ही मैं ईसा से मुक्त हुआ, मुझे बुद्ध की बातें ठीक मालूम पड़ने लगीं। बट्रेंड रसल का धर्म में कोई भरोसा न था। लेकिन बुद्ध के प्रति बड़ी श्रद्धा थी। मीरा की बात तो रसल को बिलकुल समझ में न आती। चैतन्य तो पागल मालूम पड़ते। जीसस पर भी उन्होंने शक किया है कि थोड़ा दिमाग खराब होना चाहिए। लेकिन बुद्ध पर शक करना असंभव है। बुद्ध सौ टके साफ-साफ हैं। प्रेम शब्द के आते ही काव्य प्रवेश करता है, इसलिए बुद्ध उस शब्द का उपयोग भी नहीं करेंगे। लेकिन वही कह रहे हैं, अपने ढंग से कह रहे हैं। ___ 'मृत्यु से सभी भय खाते हैं, दुख से सभी बचना चाहते हैं, दंड से सभी छिपना चाहते हैं। अतः अपने समान ही सबको जानकर न मारे, न मारने की प्रेरणा करे।' यहां खयाल रखना, प्रेम विधायक होता है, विचार निषेधात्मक होता है। विचार का ढंग होता है-नहीं। प्रेम का ढंग होता है-हां। तो बुद्ध कहते हैं, न दूसरे को मारे, न मारने की प्रेरणा करे, बस। इसलिए बुद्ध और महावीर का सारा शास्त्र अहिंसा कहलाता है। अहिंसा बड़ा नकारात्मक शब्द है। हिंसा नहीं—इतना ही अहिंसा का अर्थ होता है। जीसस कहते हैं प्रेम, नारद कहते हैं भक्ति, मीरा कहती है भाव। बुद्ध और महावीर कहते हैं : हिंसा नहीं। नकारात्मक है। वे कहते हैं, बस, दूसरे को दुख मत दो। इतना काफी है। अगर तुमने दूसरे को दुख न दिया, तो सुख का आविर्भाव होगा। उसे लाने की जरूरत नहीं है, उसे खींच-खींचकर आयोजन नहीं करना है। बुद्ध कहते हैं, तुम दूसरे को सुख देना भी चाहो तो दे न सकोगे। तुम इतनी ही कृपा करो कि दुख मत दो। तुम कांटे मत बोओ, फूल अपने से खिलेंगे, उन्हें खिलाने की कोई जरूरत नहीं है। वह मनुष्य का स्वभाव है। तुम अड़चनें खड़ी मत करो। मारो मत, जीवन अपने से खिलेगा। इसलिए बुद्ध नहीं कहते कि जीवन दो, जीवनदान करो। बस इतना ही कहते हैं, मारो मत, मारने की प्रेरणा मत दो। कोई मारता हो तो सहारा मत दो। हट जाओ। तुम्हारे द्वारा दूसरे को दुख न मिले, काफी है। क्यों? क्योंकि सुख तो सबका स्वभाव है। तुमने अगर दुख न दिया, तो बस, तुमने दूसरे को अवसर दिया कि वह अपने सुख के कमलों को खिला ले। जब जीसस, चैतन्य, मीरा या मोहम्मद कहते हैं, दूसरे को प्रेम दो, जीवन दो, तब एक विधायक स्वर प्रवेश होता है। वे इतना ही नहीं कहते कि सिर्फ दुख मत दो। क्योंकि उनको लगता है, दुख मत दो, यह बात बड़ी नकारात्मक है। इससे जीवन के काव्य का कैसे जन्म होगा? कहीं नहीं से कोई कविता कभी पैदा हुई? कहीं नहीं 166
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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