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एस धम्मो सनंतनो इनकार नहीं। मौत है, मौत सही। मेरी तरफ रत्तीभर भी इनकार नहीं कि ऐसा न हो. या अन्यथा होता। जैसा हो रहा है, वैसा ही होना था, वैसा ही होगा। मुझे स्वीकार है। मेरी तरफ से कोई विरोध नहीं, कोई प्रतिरोध नहीं। मेरी तरफ से कोई निर्णय नहीं। मेरी तरफ से कोई निंदा, प्रशंसा नहीं।
ऐसी शांत दशा में जो जीवन के सुख-दुखों को स्वीकार कर लेता है, जीवन-मृत्यु को स्वीकार कर लेता है, वह जीवन-मृत्यु के पार हो जाता है। आवागमन उसे वापस नहीं खींच पाता। वह आकाश का हो जाता है।
इस परम वीतराग दशा को हमने लक्ष्य माना था। जीवन का लक्ष्य है, जीवन और मृत्यु के पार हो जाना। वही सुख सुख है, जो दुख और सुख दोनों के पार है। ऐसी दशा ही अमृत है, जहां न तो मृत्यु आती अब, और न जीवन आता।
__ भारत की इस खोज को अनूठी कहा जा सकता है। क्योंकि पश्चिम में, और मुल्कों में, और संस्कृतियों-सभ्यताओं ने हजार-हजार लक्ष्य खोजे हैं मनुष्य के जीवन के, लेकिन जीवन के पार हो जाने का लक्ष्य सिर्फ भारत का अनुदान है। और थोड़ा ध्यान करोगे इस पर, तो समझ में आएगा कि जीवन का जिसने उपयोग इस तरह कर लिया कि सीढ़ी बना ली और जीवन के भी पार हो गया। मृत्यु पर भी पैर रखा, जीवन पर भी पैर रखा, द्वंद्व के पार हो गया-निर्द्वद्व हो गया। ___ एक तरफ से लगेगा कि यह तो शून्य की दशा होगी है। और जब इसका अनुभव करोगे, तो पता चलेगा कि यही ब्रह्म की भी दशा है। शून्य और पूर्ण एक के ही नाम हैं। तुम्हारी तरफ से देखो, तो ब्रह्म शून्य जैसा मालूम होता है। बुद्धों की तरफ से देखो, तो शून्य ब्रह्म जैसा मालूम होता है। क्योंकि शून्य इस जगत में सबसे बड़ा सत्य है। ___ और इस शून्य की तरफ जाना हो, तो शांति को साधना। शांति धीरे-धीरे तुम्हारे भीतर शून्य को सघन करेगी। तुम्हारे भीतर अनंत आकाश उतर आएगा। तुम खोते जाओगे। सीमाएं विलीन होती जाएंगी। कोरे दर्पण रह जाओगे। उस कोरे दर्पण का नाम बुद्धत्व है। और उस बुद्धत्व को पा लेने का जो उपाय है, उसको एस धम्मो सनंतनो कहा है।
आज इतना ही।
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