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एस धम्मो सनंतनो
हैं, अगर पाप किया, उजाले को खो दोगे। तुम कहोगे, दोनों बातें एक हैं।
नहीं, बड़ा फर्क है। क्योंकि धर्मगुरु कहता है, कुछ दुख जो तुम्हें नहीं मिला है, मिलेगा। जैसे अस्तित्व तुम्हें दंड देगा । और बुद्धपुरुष कहते हैं, कुछ तुम्हें मिला ही हुआ था, तुम अपनी ही अयोग्यता से उसे खो दोगे । अस्तित्व तुम्हें दंड नहीं दे रहा है। अस्तित्व ने तो तुम्हें धन्यभागी बनाया था । अस्तित्व ने तो तुम्हें बिना मांगे बहुत दिया था। अस्तित्व ने तो हाथ खोलकर दिया था, तुम्हारी झोली पूरी भरी थी । तुमने ही अयोग्यता से खोया ।
धर्मगुरु कहता है, सिद्धत्व जीवन के अंत में है । बुद्धपुरुष कहते हैं, सिद्धत्व स्वभाव है। जीवन के प्रारंभ में तुम्हें मिला ही था मोक्ष, तुमने अपने हाथ से ही बागुड़ खड़ी कर ली और सीमाएं बांध लीं । तुम्हारे जीवन में महासंगीत घट सकता था, तुमने खुद ही तार तोड़ लिए सितार के, किसी ने तोड़े नहीं हैं।
यह अस्तित्व की मंगलदायी, यह अस्तित्व की परम मंगलदायी प्रकृति की सूचना है। अस्तित्व तुम्हारे विरोध में नहीं है। तुम अस्तित्व के ही फैलाव हो । अंधेरे में गिरा देगा, ऐसा नहीं; अंधेरे में तुम गिर जाओगे, यह सच है । क्योंकि जब रोशनी खो जाएगी, तो अंधेरे में गिर जाओगे। लेकिन कोई तुम्हें गिराता नहीं ।
उमर खय्याम का एक वचन है कि मुझे कुरान पर भरोसा है, इसलिए मैं मानता हूं कि नर्क होगा जरूर। लेकिन मुझे परमात्मा की अनुकंपा पर भी भरोसा है, इसलिए मैं मानता हूं कि नर्क खाली होगा। कुरान पर भरोसा है, इसलिए नर्क होगा जरूर। कुरान कहती है । लेकिन मुझे परमात्मा की अनुकंपा पर भी भरोसा है, इसलिए मैं जानता हूं, नर्क खाली होगा, वहां कोई हो नहीं सकता।
अस्तित्व मंगलदायी है, परम कल्याणकारी । अस्तित्व का यह कल्याणकारी रूप ही तो उसका ईश्वरभाव है। तुम्हें कोई दंड देने को नहीं बैठा है। हां, पुरस्कार तुमसे छिन जाएगा, और तुम्हीं छिन जाने के कारण होओगे । सुख तुम खो सकते हो । बस, उस खोने में ही दुख है। जो हो सकता था, उसके न होने में नर्क है । जो हो सकता था, उसके हो जाने में स्वर्ग है। बीज बीज से फूल तक पहुंच जाए, स्वर्ग है। बीज बीज रह जाए, फूल तक न पहुंच पाए, नर्क है। जो होना था न हो पाए, नर्क है। जो होना था वही हो जाए, परम आनंद, परम उत्फुल्लता का क्षण आ गया। पूर्णता हुई, तृप्ति हुई।
'छोटे सार्थ और महाधन वाला वणिक जिस तरह भययुक्त मार्ग को छोड़ देता है, या जिस प्रकार जीने की इच्छा रखने वाला व्यक्ति विष को छोड़ता है, उसी तरह पापों को छोड़ दे।'
जागने की बात कह रहे हैं बुद्ध । जागे, देखे कि कितना मेरे पास है और किस-किस भांति गंवा रहा हूं। जागे और देखे, कितना जल मेरी गगरी में भरा है, कितने-कितने छेदों से गंवा रहा हूं। छेदों को भर ले ।
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