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एस धम्मो सनंतनो
यत्थट्ठितो मुञ्चेय्य पापकम्मा।।११३।।
न अन्तलिक्खे न समुद्दमज्झे न पब्बतानं विवरं पविस्स। न विज्जती सो जगतिप्पदेसो यत्थद्वितं नप्पसहेय्य मच्चू ।।११४।।
आज का पहला सूत्र, 'छोटे सार्थ, छोटे काफिले वाला और महाधन वाला
वणिक जिस तरह भययुक्त मार्ग को छोड़ देता है, या जिस तरह जीने की इच्छा रखने वाला व्यक्ति विष को छोड़ देता है, उसी तरह पापों को छोड़ दे।'
इसके पहले कि हम सूत्र को समझें, पाप के संबंध में कुछ बातें ध्यान ले लेनी जरूरी हैं। समस्त बुद्धपुरुष कहते हैं, पाप जहर के जैसा है, मृत्यु जैसा है, अग्नि में जलने जैसा है, फिर भी लोग पाप किए जाते हैं। अगर अग्नि में जलने जैसा ही है, तो अग्नि में तो इतने लोग इतनी आतुरता से अपने को जलाते हुए मालूम नहीं पड़ते। अगर विष जैसा ही है, तो विष पीकर तो लोग इतने ज्यादा पीड़ित होते दिखायी नहीं पड़ते। फिर पाप में आकर्षण क्या है? ___ बुद्धपुरुष कहते हैं-ठीक ही कहते होंगे कि अग्नि जैसा है, विष जैसा है, लेकिन मनुष्य को दिखायी नहीं पड़ता कि अग्नि जैसा है, विष जैसा है। बुद्धपुरुषों की बात सुनकर भी आदमी वही किए चला जाता है। हजार बार अपने अनुभव से भी पाता है कि शायद बुद्धपुरुष ठीक ही कहते हैं, फिर भी अनुभव को झुठलाता है
और वही किए चला जाता है। तो समझना होगा। __इतना प्रबल आकर्षण! आग में जलने का ऐसा आकर्षण तो किसी को भी नहीं है। कभी-कभार कोई आग में जलकर मर जाता है। वह भी या तो भूल से, और या आत्मघाती होता है। लेकिन अपवाद रूप। पाप के संबंध में तो हालत उलटी है, कभी-कभार कोई बच पाता है। ____ अगर सौ में से निन्यानबे लोग आग में जलकर मरते हों, तो उसे फिर अपवाद न कह सकेंगे। वह तो नियम हो जाएगा। और जो एक बच जाता हो, उसे क्या नियम का उल्लंघन कहोगे? उससे तो सिर्फ नियम सिद्ध ही होगा। वह जो एक बच जाता है, इतना ही बताएगा कि भूल-चूक से बच गया होगा। जब निन्यानबे जल मरते हों
और एक बचता हो, तो एक भूल से बच गया होगा। हां, जब एक जलता हो और निन्यानबे बचते हों, तो एक भूल से जल गया होगा।
पाप के संबंध में हालत बड़ी उलटी है। आंकड़े बड़े उलटे हैं। कहीं कोई बुनियादी बात खयाल से छूटती जाती है। उसे खयाल में लेना जरूरी है।
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