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चरैवेति चरैवेति
एक बात जान ली, पहचान ली। अब तुम समझोगे कि तुमने समझ लिया। यह समझ लेना आगे के लिए बाधा बन जाएगा। फिर दुबारा यह घटना मुश्किल हो जाएगी।
और जब यह न घटेगी तो तुम इसकी अपेक्षा करोगे, आकांक्षा करोगे, मांगोगे। जितना तुम मांगोगे, आकांक्षा करोगे, अपेक्षा करोगे, उतना ही मुश्किल हो जाएगा और भी घटना; क्योंकि यह घटी थी तुम्हारे बिना मांगे। __ तुमने मांगा थोड़े ही था कल। तुम्हें पता ही न था और यह हो गई। तुम मौजूद न थे, तब यह घटी। तुम मुझे सुनते-सुनते खो गए होओगे, तार जुड़ गया होगा मुझसे। तुम सुनते-सुनते एक लय में डूब गए होओगे। सुनते-सुनते तुम्हारा मन स्तब्ध हो गया होगा, विचार क्षणभर को ठहर गए होंगे। सुनते-सुनते विराम आ गया होगा। सुनते-सुनते मेरे साथ सुर सध गया होगा, तालमेल बैठ गया होगा। बस, यह घट गई। तुमने कुछ किया थोड़े ही था—अकृत! तुम कुछ करते होते तो घटती ही नहीं; तो बाधा पड़ जाती।
लेकिन अब खतरा है, इसलिए सावधान। अब तुम सोचोगे यह घटी, इसका रस पाया, रस-विभोर हुए। अब यह रस मन की आकांक्षा न बन जाए। ___ मन यह कहने लगे कि अब रोज घटना चाहिए; कल घटी, आज भी घटनी चाहिए, आने वाले कल भी घटनी चाहिए। आज क्यों नहीं घट रही? तो बस, तुमने उपद्रव ले लिया। तो तुम चूक गए; हाथ आते-आते सूत्र छूट गया।
तुम इसको भूल ही जाओ। तुमने तो कुछ किया न था, इसलिए तुम कौन हो इसे याद रखने वाले? तुमने तो कुछ किया न था, इसलिए तुम कौन हो इसे मांगने वाले? तुमने तो कुछ किया न था, इसलिए अपेक्षा क्या! ___ अहोभाव हुआ, बात समाप्त हुई, खतम हुई। भूलो, विस्मरण करो। तुम फिर वैसे ही अज्ञानी हो जाओ, जैसे इसके पहले थे। तुम फिर अपनी पुरानी अवस्था में खड़े हो जाओ। फिर-फिर घटेगी, और-और घटेगी, गहरी-गहरी घटेगी, बहुत गहरी छन सकती है। ___ मगर जैसे ही पहली बार घटती है, उपद्रव खड़ा होता है। तुम मांग करने लगते हो। मन इसको जकड़ लेता है, इसको भी वासना बना लेता है। और जैसे ही मांग आई, प्रार्थना गई। प्रार्थना एक क्षण है, एक भावदशा है।
प्रार्थना से जो उठा है पूत होकर
प्रार्थना का फल उसे तो मिल गया बात भूलो। बात खतम हो गई है, फिर नए हो जाओ। यह लकीर तुम्हारे मन पर न रह जाए। इसको ही मैं नासमझी कह रहा हूं, इसको ही मैं अज्ञान कह रहा हूं। तुम फिर अज्ञानी हो जाओ। इस बात के घटने के पहले तुम जहां थे कल, वहीं कृपा करके फिर पहुंच जाओ। यह बात जैसे हुई ही नहीं। यह बात जैसे तुमने सुनी कि
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