SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 276
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चरैवेति चरैवेति गई है, जाला पहले रहा होगा। धुंध तुम्हारी टूट गई है। जरा सी जगह बनी, जरा सा अवकाश हुआ है, वहां से ज्योति दिखाई पड़ने लगी। अगर पूरी आंख साफ हो जाएगी तो भीतर की ज्योति महासूर्य बन जाती है। कबीर ने कहा है, हजार-हजार सूरज जैसे एक साथ उग आएं, ऐसा कुछ हुआ है। ऐसा तुम्हारे भीतर भी होगा। __ मेरे पास तुम्हारे होने का एक ही प्रयोजन है, वह प्रयोजन यही है कि तुम अपने से परिचित हो जाओ। मेरे होने का एक ही प्रयोजन है कि तुम्हें मैं वापस तुम पर फेंक दूं। तुम मुझमें न उलझ जाना, तुम्हें अपने पर वापस जाना है। तुम्हारी आंख मुझे देखती रहे, इसमें कोई सार नहीं। तुम्हारी आंख मुझे देखकर तुम पर वापस लौट जाए, प्रतिक्रमण हो जाए, प्रत्याहार हो जाए दृष्टि का, तो ही कुछ सार है। शुभ मानना इस अनुभव को; इसको पोषित करना। इससे बेचैन मत होना, न ही आंख का इलाज करने की चिंता में पड़ जाना। __गा रहा मैं, गुनगुनाना सीख लो तुम ___ आंधियों में झिलमिलाना सीख लो तुम मेरा गीत सुनकर तुम्हारे भीतर गुनगुनाहट आ जाए; मेरे पास होकर तुम अपने पास हो जाओ। । ___जो मुझे मिला है, वह तुम्हारे भीतर भी पड़ा है। मुझमें तुममें जरा भी फर्क नहीं। मुझे पता है, तुम्हें पता नहीं। खजाने के मालिक हम सब बराबर हैं। खजाना हम लेकर ही आते हैं, क्योंकि हमारा होना ही खजाना है। बस, तुम्हें जरा तुम्हारी तरफ मोड़ना है। तुम भागे चले जाते थे, मुझसे टकरा गए और ठिठक गए; तुम्हारी दृष्टि बाहर भागी चली जाती थी, मुझसे टकरा गई, चौंधिया गई, अपनी तरफ लौट गई; जिसको रिफ्लेक्शन कहें-प्रतिक्रमण; किसी चीज का वापस लौट जाना। आईने पर सूरज की किरण पड़ती है, वापस लौट जाती है। इसलिए आईने से कभी-कभी आंखें चौंधियाई जा सकती हैं। कोई व्यक्ति अगर आईना लेकर धूप में तुम्हारी आंख पर प्रतिबिंब को फेंके तो तुम्हारी आंखें चौंधिया जाएंगी। __ दर्पण की तरह तुम्हारी दृष्टि मुझसे टकराकर लौट गई होगी। तुम सावचेत न थे, तुम ऐसे ही चले आए थे। तुम्हें पता न था, क्या होने जा रहा है। कल एक युवक संन्यास लिया। उसके भीतर ऊर्जा वर्तुलाकार घूम रही है, उसे पता नहीं। जैसे ही मैंने उसे छुआ, उसने कहा कि मेरे भीतर ऊर्जा वर्तुलाकार घूम रही है, चक्कर काट रही है। घूम ही रही थी। उसे मैंने छुआ इसीलिए, कि मैंने देखा कि उसके भीतर ऊर्जा चक्कर काट रही है। लेकिन वह शायद यही सोचेगा कि मेरे छूने से उसके भीतर ऊर्जा चक्कर काटी। बात बिलकुल उलटी है; मैंने छुआ, क्योंकि देखा कि ऊर्जा चक्कर काट रही है। लेकिन जैसे ही मैंने छुआ, वह अपने पर लौट गया; जिसको उसने कभी भीतर 263
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy