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________________ चरैवेति चरैवेति आदमी हैं, इनकी नजर से कानून दिखाई पड़ रहा है। ये रास्ता देख रहे हैं कि कब आप खिसकें, ये ऊपर बैठे। इसलिए ये बीच में बैठे हैं; इनको पार करके दूसरा न जा पाएगा। वे दोनों बड़े नाराज हो गए। उन्होंने कहा, आप शिष्टाचार की सीमा तोड़ रहे हैं। मैंने कहा, मैंने तो समझा संन्यासियों से बात हो रही है, क्या शिष्टाचार? सत्याचार! शिष्टाचार तो संसारी रखते हैं, संन्यासी से बात हो रही हो तो सत्याचार; इसमें क्या शिष्टाचार ! नाराज क्यों होते हैं? उन्होंने बुलाया तो था मुझे बोलने, अब वे बड़े घबड़ाए। शाम को उनकी बड़ी सभा थी, कोई बीस हजार लोग मौजूद थे। अब वे बड़ी बेचैनी में पड़ गए, बड़ी राजनीति शुरू हो गई कि इस आदमी को बोलने देना कि नहीं! क्योंकि पता नहीं यह आदमी क्या कहे! इतना सत्याचार उन्हें जमा नहीं। ठीक शाम को खबर आई कि मैं बोल न सकूँगा। मैंने कहा कि चलो तो मैं सुनने ही आ जाता हूं। अब इसको वे मना न कर सके। सुनने के लिए तो क्या मनाही है? चलो, अब इतनी दूर आ गया हूं तो सुन ही लूंगा। जब मैं वहां मंच पर बैठ गया तो लोग चिल्लाने लगे कि सुनना है। मैंने कहा, अब इनकी मैं सुनं, क्या करूं? वे सभापति थे; उन्होंने कहा, मैं सभापति हूं। तो मैंने कहा कि अब पूरी सभा कह रही है। मैंने कहा, हाथ उठवा लें। तो पूरी सभा ने हाथ उठा दिए। मैंने कहा, अब मैं सभापति की मानूं कि सभा की? आप पति रहे नहीं; यह तो तलाक हो गया! अब तो मैं बोलूंगा। तो जिन्होंने मुझे निमंत्रण देकर बुलाया था, उनकी परेशानी तुम समझ सकते हो। अहंकार बड़े रास्ते खोजता है। वे उठकर चले गए। उन्होंने खड़े होकर कह दिया, सभा विसर्जित–हालांकि सभा विसर्जित न हुई, वे उठकर चले गए। अहंकार विनम्रता में छिप जाएगा। अज्ञान ज्ञान की शरण में छिप जाता है। तुम जरा अपने अंधेरे को तो देखो! तुम्हारा अंधेरा बड़ा कुशल है। हो सकता है, प्रकाश के सहारे छिपा बैठा हो। अंधेरा बड़ा चालाक है। हिंदी के एक बड़े कवि थे–महाकवि दिनकर-सदा मुझे मिलने आते थे। पटना मैं जाता-उनके गांव-तब तो वे निश्चित आते ही; कहीं भी उन्हें पता चल जाता, आसपास होते तो मुझे मिलने आते। मूर्धन्य कवि थे, बड़ी प्रतिभा थी, मुझसे लगाव था। ____ एक बार मुझे मिलने आए, संयोग की बात, मुझसे उन्होंने कहा कि डायबिटीज की बीमारी उन्हें हो गई है। तो मैंने कहा कि यह तो बड़ा मुश्किल हुआ, क्योंकि उनको मिष्ठानों से बड़ा लगाव था, जैसा सभी बिहारियों को...हमारे मैत्रेय जी बैठे हैं। अब बड़ी मुश्किल हो गई, डायबिटीज हो गई और मिठाई! तो मुझसे बोले कि बड़ा मुश्किल में पड़ गया हूं। यह तो जीना दूभर हो गया, मिठाई बिना चलता नहीं। 259
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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