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पहला प्रश्न :
चरैवेति चरैवेति
आप कैसे समझेंगे कि मैं प्रेम में हूं और मैं कैसे समझं कि आपने मेरा प्रेम स्वीकारा ?
म हो तो छिपाए भी नहीं छिपता; और प्रेम न हो तो कितना ही बताओ, बताया नहीं जा सकता।
प्रेम के होने में ही उसकी अभिव्यक्ति है । जैसे सूरज निकलता है, तब सूरज के होने का और क्या प्रमाण चाहिए ? सूरज का होना ही काफी प्रमाण है ।
प्रेम की रोशनी सूरज से भी ज्यादा है; तुम्हें दिखाई नहीं पड़ती, क्योंकि सूरज को देखने के लिए तो तुम्हारे पास आंख है, प्रेम को देखने के लिए तुम्हारे पास आंख नहीं । प्रेम हो तो छिपाए नहीं छिपता । प्रेम का होना इस जगत में सबसे सघनीभूत घटना है; उससे ज्यादा सूक्ष्म कुछ भी नहीं है, उससे ज्यादा विराट भी कुछ नहीं है ।
प्रेम यानी परमात्मा की झलक ।
इसीलिए तो जिससे तुम्हें प्रेम हो जाए, उसमें परमात्मा दिखाई पड़ने लगता है । अगर तुम्हें अपने प्रेमी में परमात्मा न दिखाई पड़े तो प्रेम हुआ ही नहीं, कुछ और हुआ होगा; तुमने कुछ और समझ लिया। जहां भी प्रेम हो, वहां परमात्मा दिखाई
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