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________________ एस धम्मो सनंतनो हो। अभी तो तुम इतने घुले-मिले हो, शरीर सोता है, तुम सो जाते हो। अभी तो इतने घुले-मिले हो, भेद नहीं है, फासला नहीं है, अंतराल नहीं है। धीरे-धीरे अंतराल होगा। और चूंकि ध्यान का प्रयोग कर रहे हो, इसलिए पहला अंतराल नींद में पड़ेगा: इसे खयाल में रखना। ___अलग-अलग धर्मों ने अलग-अलग प्रयोग किए हैं, इसलिए अलग-अलग अंतराल पड़ते हैं। चूंकि हम यहां ध्यान पर ही सारा जोर दे रहे हैं, इसलिए पहला अंतराल तुम्हारी नींद में पड़ेगा। क्योंकि जागरण और नींद में बड़ा विरोध है। जब ध्यान सधेगा, तो शरीर तो सो जाएगा, तुम न सोओगे। तत्क्षण दिखाई पड़ेगा कि तुम अलग हो। इस शरीर से तुम एक कैसे हो सकते हो, जो सो गया और तुम जाग रहे हो? भिन्नता आ गई, भेद आ गया, सेतु टूट गया। जो लोग उपक्स की साधना करते हैं, उनका पहला भेद भोजन के साथ पड़ेगा। शरीर को भूख लगेगी और वे भीतर पाएंगे, परिपूर्ण तृप्त-संबंध टूट गया, सेतु गिर गया। उन्होंने जान लिया कि भूख शरीर की है, उपवास चैतन्य का है। इसीलिए तो उपवास शब्द बड़ा मूल्यवान है। उपवास का अर्थ है : अपने निकट वास; अपने पास आ जाना। उसका भूखे रहने से कोई लेना-देना नहीं है। अनशन नहीं है उपवास। अनशन राजनैतिक नेता करते हैं, उपवास का उन्हें क्या पता? उपवास तो बड़ा साधु चित्त व्यक्ति ही कर सकता है। राजनैतिक नेता उपवास कहते हैं अपने अनशन को, कहना नहीं चाहिए। उनका अनशन तो हिंसात्मक है। वह तो दूसरे पर जबर्दस्ती करने के लिए करते हैं। वह तो दूसरे को मजबूर करने के लिए करते हैं। वह तो ऐसे ही है, जैसे किसी की छाती पर छुरा रख दिया। दूसरे की छाती पर न रखा, अपने पर रख लिया। स्त्रियां सदा से यही करती रही हैं–राजनैतिक नेता अब-अब सीखे हैं—अपना ही सिर पीट लेती हैं। मारना पति को था, लेकिन उसकी सुविधा नहीं है, आज्ञा भी नहीं है, शास्त्रों में स्वीकृति भी नहीं है, पति परमात्मा है! मारना था पति के सिर को, दीवार से टकराना था पति के सिर को, वह हो नहीं सकता; तो स्त्रियां सदा से करती रही हैं। किसी ने न कहा कि ये सत्याग्रही हैं। वे सदा से रही हैं। उन्होंने अपना ही सिर ठोंक लिया। पर इतनी ठोंक-पीट मचाई कि पति को झुकना पड़ा। अनशन एक बात है: स्त्रियां बहत दिन से करती रही हैं। राजनेता अभी-अभी सीखे हैं। वह स्त्रैण मनोविज्ञान है। उपवास बड़ी और बात है। अनशन का मतलब है, दूसरे के साथ तुम जबर्दस्ती करना चाहते हो। जिसे तुम समझा न सके, जिसे तुम विचार से राजी न कर सके, जिसे तुम अपनी राह पर ले जाने के लिए हार गए; अब तुम एक ऐसा उपाय कर रहे हो, जो उचित नहीं है; जो कि बड़ी जालसाजी का है, जो कि बड़ी बेईमानी का है। अब तुम इस तरह की जबर्दस्ती उस पर थोप रहे हो कि जिसको वह इनकार 244
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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