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________________ कल्याण मित्र की खोज उस गंध को ही आत्मा कहते हैं। बुद्ध ने उस गंध को अनत्ता कहा है, अनात्मा कहा है। ____ शब्द से बहुत परेशान मत हो जाना। उपनिषद उसी गंध को आत्मा कहते हैं। वे कहते हैं, वही तुम्हारा वास्तविक होना है। और बुद्ध कहते हैं उसे अनात्मा, अनत्ता। क्योंकि वे कहते हैं, वहां तुम्हारा मैं जैसा कोई भाव नहीं; उसको आत्मा कैसे कहें? होना तो है वहां, मैं नहीं है। ___ बुद्ध की बात उपनिषद से भी गहरी जाती मालूम पड़ती है। उपनिषद के आगे एक और कदम। आत्मा में थोड़ा अहंकार मालूम पड़ता है-मैं! बुद्ध कहते हैं, उसे भी जाने दो, वह भी सीमा बन जाएगी। जहां तक मैं है, वहां तक तू भी रहेगा। फूल डाली से गुंथा ही रह गया घूम आई गंध पर संसार में तुम गंध जैसे हो जाओ, फूल जैसे नहीं। समझ गंध है। फिर न शरीर बांधता, न मन बांधता। समझ मन और शरीर दोनों के पार है। समझ साक्षी भाव है। आज इतना ही। 231
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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