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________________ एस धम्मो सनंतनो ऐसा तो मालूम नहीं होता, भटकाया ऐसा मालूम होता है। कभी सौ गुरुओं में कोई एक गुरु होता होगा, निन्यानबे तो गुरु नहीं होते, सिर्फ गुरु आभास! ___ इसलिए बुद्ध ने नया शब्द चुन लिया, कल्याण मित्र। बुद्ध ने अपने शिष्यों को कहा है कि मैं तुम्हारा कल्याण मित्र हूं। और बुद्ध ने कहा है कि इस जीवन की सारी समझ के बाद, अब दुबारा जब मैं आऊंगा, तो मेरा नाम मैत्रेय होगा–सिर्फ मित्र! मैत्रेय। भविष्य में जब मैं आऊंगा तो मेरा नाम मैत्रेय होगा। जैसे गुरु को बिलकुल ही काट दिया। पर ठीक ही है। गुरु का प्रयोजन ही वही है कि वह तुम्हारा कल्याण मित्र हो जाए। मित्र बड़ा प्यारा शब्द है। और बुद्ध ने उसे बड़ी महिमा दे दी कल्याण शब्द साथ जोड़कर। जैसे लोहे के साथ पारस जोड़ दिया-सब सोना हो गया। ___'बुरे मित्रों की संगति न करे, न अधम पुरुषों की संगति करे। कल्याण मित्रों की संगति करे और उत्तम परुषों की संगति करे।' __ अगर कल्याण मित्र न मिले तो उत्तम पुरुष की संगति करे। उत्तम पुरुष का अर्थ है : जो तुमसे थोड़ा आगे गया। कल्याण मित्र का अर्थ है : जो पहुंच गया; जिसने शिखर पर घर बना लिया। _उत्तम पुरुष का अर्थ है जो मार्ग पर है, लेकिन तुमसे आगे है; तुमसे श्रेष्ठतर है, तुमसे सुंदरतर है। उत्तम पुरुष का अर्थ है : साधु। उत्तम पुरुष का अर्थ है : थोड़ा तुमसे आगे। कम से कम उतना तो तुम्हें ले जा सकता है, कम से कम उतना तो तुम्हें खींच ले सकता है। चार कदम सही, लेकिन चार कदम भी क्या कम हैं? चार कदम बढ़कर और आगे तुम्हें उत्तम पुरुष दिखाई पड़ने लगेंगे। ___उत्तम पुरुषों के साथ रहते-रहते ही तुम्हें कल्याण मित्र की पहचान आएगी। उत्तम पुरुषों के साथ रमते-रमते ही तुम्हारी आंखें शिखर की तरफ उठनी शुरू होंगी। ऊंचाई की तरफ जाने वाले लोग, ऊंचाई की तरफ दृष्टि करने लगते हैं। नीचाई की तरफ जाने वाले लोग, नीचाई की तरफ दृष्टि रखते हैं। तुम्हारी दृष्टि वहीं हो जाती है, जहां तुम जाना चाहते हो। 'उत्तम पुरुषों की, कल्याण मित्रों की संगति करे।' बड़े परिणाम होते हैं अगर उत्तम पुरुषों का संग-साथ मिल जाए। क्योंकि जीवन का एक बुनियादी नियम समझ लेना जरूरी है। तुम अकेले पैदा नहीं हुए। तुम समाज में पैदा हुए हो। तुमने पहली भी श्वास ली थी, तो समाज में ली थी। अकेले तो शायद तुम बच ही न सकते। मनुष्य का बच्चा बच नहीं सकता अकेला। मां न हो, पिता न हो, परिवार न हो, तो बच्चे के बचने की कोई उम्मीद नहीं, कोई आशा नहीं। समाज, चारों तरफ प्रियजनों का परिवार, उनके बीच ही तुमने पहली श्वास ली है। उस बड़े जन्म के लिए, उस नए जन्म के लिए भी फिर तुम्हें एक परिवार चाहिए, जहां तुम एक और श्वास लोगे-परमात्मा की श्वास कहो, निर्वाण की श्वास कहो। 224
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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