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एस धम्मो सनंतनो
है या नहीं। पंद्रह साल बाद भी मुझे याद रखता है। ___ जो तुम्हारी प्रशंसा कर रहा है, उससे थोड़े सावधान रहना। उसके हाथ तुम्हारे खीसे में होंगे। वह तुम्हें बाजार में कहीं न कहीं बेच देगा। तुम जितने जल्दी उसके चंगुल के बाहर हो सको, उतना अच्छा है। बुरा मित्र वही है, जो तुम्हारा साधन की तरह उपयोग करना चाहता है।
मित्रता तो तुम्हें साध्य बना देती है, साधन नहीं। मित्रता तभी है, प्रेम तभी है. जब तुमने किसी दूसरे को साध्य बना दिया और दूसरे ने तुम्हें साध्य बना दिया। तुमसे कोई लाभ नहीं लेना है। तुम्हारा कोई भी शोषण नहीं करना है। तुम्हारी खुशी में जब खुशी है और तुम्हारी पीड़ा में जब पीड़ा है। तुमसे जब कोई लाभ का संबंध ही नहीं है, सारा संबंध प्रेम का है, बेशर्त है, तब कोई मित्र है। जहां शर्ते लगी हैं, . वहां कोई मित्रता नहीं है। वहां मित्रता धोखा है। वहां मित्रता केवल चालबाजी है। वहां मित्रता कूटनीति है। 'बुरे मित्रों की संगति न करे।' ऐसे मित्रों से सावधान रहना। 'न अधम पुरुषों की संगति करे।'
अधम पुरुष वह है, जिसकी जीवन-यात्रा नीचे की तरफ हो रही है। उसके साथ संग-साथ ठीक नहीं है। क्योंकि तुम अभी इतने बलशाली नहीं हो कि कोई नीचे की तरफ जा रहा हो और तुम नीचे की तरफ न जाने लगो। अभी तुम हर किसी के साथ पैर मिलाने लगते हो, हर किसी के साथ चल पड़ते हो। अभी तुम कमजोर हो, अभी तुम बहुत शक्तिशाली नहीं हो। अभी तुम्हारे भीतर सारी नीचे जाने वाली वासनाएं छिपी पड़ी हैं। __अगर तुम कोई मंदिर जा रहे थे, और रास्ते में एक मित्र मिल गया और वेश्याघर
की बात करने लगा, तो बहुत संभावना है कि तुम मंदिर की फिक्र छोड़ो। तुम कहो, मंदिर कल भी रहेगा, इतनी जल्दी क्या है? यह भी हो सकता है, तुम उसकी सुनकर भी मंदिर पहुंच जाओ, लेकिन मंदिर पहुंच न पाओगे। पूजा-प्रार्थना में लगे भी तुम्हें वेश्यागृह की याद आने लगेगी। हाथ जोड़ोगे भगवान के समक्ष, लेकिन तुम्हारी वहां भी मौजूदगी न होगी। तुम जा चुके! तुम गए या नहीं, यह सवाल नहीं है।
तुम्हारे भीतर नीचे उतरने की संभावना बहुत प्रगाढ़ है। क्योंकि नीचे उतरना हमेशा सुगम है; ऊपर जाना कठिन है, पहाड़ पर चढ़ने जैसा है। नीचे जाना पहाड़ से उतरने जैसा है। पहाड़ पर चढ़ना हो तो श्रम करना पड़ता है। उतरना हो तो पहाड़ का ढलान ही तुम्हें दौड़ा ले आता है नीचे; कुछ करना नहीं पड़ता।
नीचे जाते हुए आदमी की तरफ दोस्ती का हाथ मत बढ़ाना। क्योंकि यह तो खुद ही कठिन है कि तुम अपने को ही चढ़ा लो; और एक और आदमी का हाथ पकड़कर उसको भी चढ़ाना और भी मुश्किल हो जाएगा। अपने को ही बचाना मुश्किल है,
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