SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 214
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जागरण और आत्मक्रांति मिलता है, तुम सिर्फ शास्त्र पढ़कर पा लेना चाहते हो। ___ क्या महावीर के समय शास्त्र न थे? महावीर भी शास्त्र ही पढ़कर पा लेते। क्या बुद्ध के समय शास्त्र न थे? बुद्ध भी शास्त्र ही पढ़कर पा लेते। अब यह जीसस पागल को क्या सूझी? सूली पर चढ़ने की क्या जरूरत थी? अपने घर के कोने में पूजा-पाठ करके ही पा लेते। नहीं, लेकिन सत्य सस्ता नहीं है; उसका मूल्य चुकाना पड़ता है। और उसका मूल्य एक ही ढंग से चुकाया जा सकता है: वह स्वयं के संपूर्ण समर्पण से चुकाया जा सकता है। ___धारणाएं तुम्हें अटका लेती हैं। विश्वास तुम्हें रोक लेते हैं। मगर उनमें सांत्वना है, सहारा है। उनमें शराब है। उनको पीकर तुम विस्मृत कर लेते हो। भय कम हो जाता है। ___ मैंने सुना है, एक सर्कस...यात्रा हो रही थी सर्कस की एक ट्रेन से, और एक डब्बा खुल गया और एक शेर भाग गया। गाड़ी कहीं खड़ी थी...रात जंगल; तो सर्कस के मैनेजर ने दस-पंद्रह अपने मजबूत आदमी बुलाए और उन सबको शराब पिलाई। जंगल में जाना है, अंधेरी रात है, और उस शेर को पकड़ना है। बिना शराब पीए जाना उचित भी नहीं है। बिना शराब पीए कोई जाएगा ही क्यों? एक आदमी ने इनकार कर दिया पीने से। उसने कहा कि भई, जंगल है, रात है, अंधेरा है, पी लो। गर्मी रहेगी। उसने कहा कि ऐसे हमें पीने से कोई एतराज नहीं, मगर ऐसी घड़ी में हम कभी नहीं पीते। रात है, अंधेरी है, जंगल है, शेर है, और हम बेहोश! इसीलिए नहीं पीते हैं। जिंदगी माना अंधेरी है, रात है, रास्तों का कुछ पता नहीं; और मौत जगह-जगह छिपी है—ऐसे में बेहोश होकर मत चलना। ऐसे में मन कहता है कि बेहोश हो लो, फिक्र नहीं फिर। वही तो खतरा है। बेहोशी में आदमी शेर से भी जूझ जाए। बेहोशी में आदमी मौत से भी जूझ जाए। - तो हजारों तरह की शराबें हैं, जो आदमी को पिलाई जाती हैं। ताकि वह इस जिंदगी में, जो सब जीवन के भय हैं—मौत है, खतरे हैं, शून्य है-इन खतरों की याद न रहे। समझो कि तुम युद्ध पर जाते हो! तो फिर तुम्हें राष्ट्रीयता की शराब पिलानी पड़ेगी जाने के पहले सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा। यह क्या पागलपन है? पहले यह शराब पिलाओ, तब यह आदमी मरने-मारने को उतारू हो जाएगा। झंडा ऊंचा रहे हमारा–अब कुछ और पागलपन करने को नहीं बचा, झंडा ही ऊंचा कर रहे हो? और झंडा काहे के लिए ऊंचा रहे? और झंडे ऊंचे रख-रखकर कितने आदमी मार डाले। अगर कोई मंगल ग्रह से आकर देखे तो हैरान होगा कि लोगों को हो क्या गया 197
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy