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जागरण और आत्मक्रांति
भी न आया।
तो उस गरीब आदमी ने कहा कि अब बस, बहुत हो गया; कोई साफा मत उतार लेना। तो एक आदमी ने झटककर साफा भी उतार लिया। वे सौ रुपए वहां से गिर पड़े। उस गरीब आदमी से पूछा कि कितने रुपए थे तुम्हारे पास, गिनती है कुछ? उसने कहा, पूरे सौ थे। गिने तो वे सौ ही निकले। अब तो कुछ कहने की बात ही न रही। महाराज को धक्के देकर बाहर निकाल दिया।
उन साधु ने मुझे कहानी कही और कहा कि लोभ पाप का बाप बखाना।
तो मैंने उनसे पूछा कि संन्यासी लोभी था, यह मेरी समझ में आ गया; लेकिन वह जो गरीब आदमी घर ले आया था, वह कौन था? इस कहानी से इतना ही सिद्ध होता है कि एक का लोभ हारा, लेकिन दूसरे का तो जीता। इससे लोभ हारा, यह सिद्ध नहीं होता। इससे यह भी सिद्ध नहीं होता कि लोभ बुरा है। इससे इतना ही सिद्ध होता है कि साधु का लोभ हारा, लेकिन उस गरीब आदमी का लोभ तो जीता।
और हो सकता है, साधु ने एक-एक रुपया करके बामुश्किल इकट्ठा किया हो और इस गरीब आदमी ने तो बड़ी तरकीब से छीन लिया।
चलते वक्त उस गरीब आदमी ने कहा, महाराज! अब कब आएंगे? तो उसने कहा, अब जब सौ रुपए फिर हो जाएंगे।
'मैंने उन साधु को पूछा कि आप यह कहानी कहकर क्या कहना चाहते थे? साधुओं की कहानी मैं अक्सर गौर से सुनता रहा हूं; क्योंकि उससे उनका मंतव्य जाहिर होता है और उनकी मूढ़ता भी जाहिर होती है। साधुओं की कही गई कहानियों में अक्सर ही मूढ़ता के दर्शन होते हैं। अब यह निपट मूढ़ता की बात हुई। एक का लोभ हारा, एक का जीत गया। ___ इसे तुम थोड़ा सोचो; अगर तुम्हारा लोभ हार गया हो, तो जरूर किसी का जीता होगा; नहीं तो हारेगा कैसे? अगर तुमने जीवनभर पाया कि तुम्हारा लोभ हार बन गया तो जरूर किन्हीं और के लोभ जीत बन गए होंगे। अगर तुम पराजित हुए हो तो कोई जीता होगा। अगर तुमने सिंहासन गंवाया है तो कोई बैठा होगा। तुम्हें अगर अंगूर हाथ न लगे तो किसी को लग गए होंगे।
यह पराजय लोभ की है या अहंकार की? यह विषाद लोभ का है या अहंकार का है?
सिकंदर का लोभ तो हारता हुआ मालूम नहीं होता, जीतता ही चला जाता है। राकफेलर या बिरला के लोभ तो हारते हुए मालूम नहीं पड़ते, जीतते ही चले जाते हैं। तुम्हारा हार गया होगा। इससे लोभ हार गया, यह सिद्ध नहीं होता। इससे केवल इतना ही सिद्ध होता है कि लोभ के जीतने के लिए जितनी जरूरत थी, वह तुम न जुटा पाए। और तुम भी यह भलीभांति जानते हो। लेकिन यह कहने में भी मन को पीड़ा होती है कि अंगूरों तक मैं न पहुंच पाया। तो तुम कहते हो, अंगूर खट्टे हैं, सारी
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