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जागरण और आत्मक्रांति.
आंख जब खुलेगी तो तुम ऐसा न पाओगे कि हाथ में कूड़ा-करकट है, कूड़ा-करकट भी नहीं है। आंख जब खुलेगी तो तुम ऐसा न पाओगे कि हाथ में जहर है, सपनों ने जहर दे दिया। सपने क्या जहर देंगे? और सपने अगर जहर दे दें तो सपने नहीं, सच हो गए। और फिर तो भागने की जरूरत नहीं है। जहां से जहर निकल आया, वहां से अमृत भी निकलेगा।
तुमने समुद्र-मंथन की कथा पढ़ी है। मंथन हुआ तो जहां से जहर निकला वहीं से अमृत भी निकला। असल में जहां से जहर निकल आया, वहां से अमृत निकलने की सुविधा शुरू हो गई। इतना यथार्थ ! जहां से मौत निकल सकती है, वहीं से जीवन भी निकल सकता है। जहां से कांटा निकल आया, अब फूल भी निकल सकता है। थोड़ा और खोजना होगा। ___अगर तुमने देखा कि जहर निकला है लोभ से, तब तुम्हारी खोज बंद न होगी। तुम कहोगे, जब जहर तक निकल आया तो अमृत भी थोड़े दूर होगा; और थोड़े चले चलें, यह पूंट भी पी जाएं, थोड़े और बढ़ लें। जागोगे तो तुम उस दिन, जिस दिन तुम पाओगे कि लोभ नपुंसक है; इससे कुछ भी नहीं निकलता। यह खाली आपा-धापी है। यह व्यर्थ की दौड़-धूप है। यह नशे में चलते हुए आदमी के सपने हैं। जब जाग होती है तो कुछ भी हाथ में नहीं होता। तब लोभ टूटेगा। ___'माना कि लोभ और लाभ का रास्ता ईर्ष्या, घृणा और भय और दुश्चिता से पटा है।'
यह लोभ ही बोल रहा है। यह लोभ ही डर रहा है। लोभ कुछ और चाहता था, वैसा न हुआ। __ 'वह जीवन में जहर घोल देता है, ऐसा मेरे लंबे जीवन का अनुभव है।'
ऐसा लंबे लोभ का अनुभव है। यह लोभ की प्रतीति है। यह जागरण की प्रतीति नहीं है। और इसमें भटक जाना बहुत आसान है। अगर इस कारण तुमने लोभ की दुनिया छोड़ने की कोशिश की तो तुम लोभ को कहीं और आरोपित कर लोगे। तुम दान करोगे, लेकिन स्वर्ग में मांग करोगे। तुम बदला चाहोगे। तुम सेवा करोगे तो तुम प्रतीक्षा करोगे कि कब अमृत की वर्षा मेरे ऊपर हो। लोभ बड़ा कुशल है-बच गया; छिप गया भीतर।
और अब उसने जो छांव अपने लिए बनाई है, वह ज्यादा देर टिकेगी। अब तो तुम बहुत ही सजग होओगे तो ही समझ पाओगे। संसार में जो लोभ की यात्रा चलती है, वह तो मूढ़ भी समझ लेते हैं, बड़ी स्थूल है। लेकिन परलोक के नाम से जो लोभ की यात्रा चलती है, बड़ी सूक्ष्म है। तुम्हारे तथाकथित बुद्धिमान भी नहीं समझ पाते। कोई कभी हजारों में एक जाग पाता है और देख पाता है।
सौ बार तेरा दामन हाथों में आया जब आंख खुली देखा अपना ही गिरेबां था
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