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________________ पुण्यातीत ले जाए, वही साधु-व -कर्म दुनिया छोड़ने के आधार पर अगर तुमने सोचा हो कि तुम परमात्मा को जान लोगे, तो असंभव। हां, तुम्हारा अहंकार शायद और मजबूत हो जाए। गरूरे-‍ - खुल्द जाहिद — तुम्हारे वैराग्य से चाहे तुम्हारा गरूर और बढ़ जाए । तर्के-दुनिया के भरोसे पर - दुनिया छोड़ने के भरोसे पर तुम यह मत सोचना कि तुम परमात्मा को पा लोगे । परमात्मा यहीं छिपा है। उसे खोजना है। मजा तो तब है, जब दीवार दर बने । जहां-जहां छिपा है, वहीं-वहीं पर्दा उठाना है । तुममें भी छिपा है। अगर तुम आंख बंद करो और विचारों का पर्दा उठा लो तो वहीं जाहिर हो जाए। संभल ऐ बेखबर क्यों खानुमा बर्बाद होता है त्यागी सिर्फ बर्बाद हो रहा है । भोगी भी बर्बाद हो रहा है । भोगी के और ढंग हैं बर्बाद होने के, त्यागी के और ढंग हैं, लेकिन दोनों बर्बाद होते हैं। क्योंकि दोनों मूढ़ता पर ही खड़े हैं। मेरे पास ऐसे संन्यासी आ जाते हैं कभी, जो कि चालीस साल से त्यागी हैं, घर-द्वार छोड़ दिया। उन्हें देखकर दया भी आती है, हंसी भी आती है। चालीस साल से दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं, दीवालों से सिर टकरा रहे हैं, अब मरने के करीब आ गए हैं। वे मेरे पास आते हैं, वे कहते हैं कि ध्यान कैसे करें ! चालीस साल तुम क्या कर रहे थे ? वे कहते हैं, त्याग किया। और ध्यान चालीस साल के त्याग करने से भी उपलब्ध न हुआ ? चालीस जन्मों में भी उपलब्ध न होगा । और ध्यान उपलब्ध हो जाए तो त्याग ऐसे ही उपलब्ध हो जाता है, जैसे आदमी के पीछे उसकी छाया चली आती है। और तब त्याग में एक संयम होता है, अति नहीं होती; तब त्याग में एक सौंदर्य होता है; तब त्याग में एक प्रफुल्लता होती है; तब त्याग तुम्हें कुम्हलाता नहीं, खिलाता है। आज की सुबह मेरे कैफ का अंदाज न कर दिले-वीरां में अजब अंजुमन आराई है ये जमीं खित्त-ए-फिरदौस को शर्माने लगी गुले-अफसुर्दा से नौखेज महक आने लगी आज की सुबह है बहाए-तमन्ना की सहर आज की सुबह मेरे कैफ का अंदाज न कर आज इतना ही । 119
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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