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________________ ___ लुत्फ-ए-मय तुझसे क्या कहूं ! अंततः एक दिन उससे न रहा गया। उसने पूछा कि क्या मैंने तुम्हें कभी देखा है? वह आदमी एकदम रोने लगा। उसकी आंख से आंसू झर-झर गिरने लगे। उसने कहा, तुम रोते क्यों हो? मैंने तुम्हारा कोई घाव छू दिया? उस आदमी ने कहा कि मैं डर रहा था कि आज नहीं कल शायद तुम पूछोगे। बीस वर्ष पहले तुम ने मेरा चित्र बनाया था। तब उस चित्रकार को याद आई कि बीस वर्ष पहले उसने एक चित्र बनाया था। तब इस तलाश में था वह कि दुनिया में जो श्रेष्ठतम और सरलतम और भोले से भोला, भोला-भाला चेहरा हो, उसका चित्र बनाना है। और इसी आदमी का चित्र बीस साल पहले बनाया था। और बीस साल बाद वह दुनिया के सब से बुरे आदमी का चित्र बनाने निकला। संयोग की बात, वही आदमी! वह आदमी रोए न तो क्या करे? ____दोनों चित्र सब के भीतर हैं। तुम्हारे भीतर भी दोनों चित्र हैं। तुम पर निर्भर है, क्या तुम उभारोगे। अगर विकृत को, विध्वंस को उभारने की चेष्टा रही तो मढ़ता है। अगर तुमने अपने भीतर श्रेष्ठ को, सत्य को, सुंदर को उभारना चाहा तो तुम विज्ञ हो। दोनों तुम कर सकते हो। दोनों रास्ते खुले हैं। किसी ने कहीं कोई तुम्हें अवरोध नहीं दिया है। तुम्हारी स्वतंत्रता परम है। __ ध्यान रखना, अगर विध्वंस को चुना, मूढ़ता को चुना तो पछताते हुए मरोगे। सारा जीवन जब व्यर्थ जाता है तो पछतावा स्वाभाविक है। अधिक लोग मरते समय मौत के कारण नहीं रोते। मेरा तो जानना यही है कि मौत के कारण कोई भी नहीं रोता। रोते हैं इसलिए कि जीवन व्यर्थ गया और मौत आ गई। जिनके जीवन में सार्थकता आई, वे हंसते हुए विदा होते हैं। उनके लिए मौत एक पूर्णाहुति है। उनके लिए मौत जीवन का चरम शिखर है। वह जीवन के छंद की आखिरी ऊंचाई है। वह जीवन के गीत की आखिरी कड़ी है। मेरी तखईल का शीराजा-ए-बरहम है वही मेरे बुझते हुए एहसास का आलम है वही वही बेजान इरादे वही बेरंग सवाल वही बेरूह कशमकश वही बेचैन खयाल कहीं ऐसा न हो कि मरते वक्त वही बेजान इरादे, वही बेरंग सवाल तुम्हें घेरे रहें। कहीं ऐसा न हो, वही बेरूह कशमकश, वही बेचैन खयाल तुम्हारी अंतरात्मा को घेरे रहें। कहीं ऐसा न हो __ मेरी तखईल का शीराजा-ए-बरहम है वही कहीं तुम ऐसा न पाओ कि तुम वही के वही हो। जैसे आए थे, वैसे ही जा रहे हो। कुछ कमाया नहीं, कुछ निखरा नहीं। कुछ हो न सके। मेरे बुझते हुए एहसास का आलम है वही कहीं बुझते क्षणों में जब दीए की आखिरी लौ बुझने लगे तो ऐसा न लगे कि मैं 91
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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