SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लुत्फ-ए-मय तुझसे क्या कहूं! चौथा प्रश्नः आप तो कहते हैं कि बुद्ध पुरुष के संसर्ग से पशु, पक्षी और पेड़-पौधे भी वही नहीं रह जाते जो वे थे। फिर मूढ़ मनुष्य क्या पेड़-पौधों से भी गया बीता है? निश्चित ही। कोई पेड़-पौधा मूढ़ नहीं है। पेड़-पौधे की वह क्षमता नहीं। मूढ़ होने के लिए मनुष्य होना जरूरी है। कोई पेड़-पौधा बुद्ध भी नहीं है। वह भी उसकी क्षमता नहीं है। तुम किसी पेड़ को पापी नहीं कह सकते, पुण्यात्मा नहीं कह सकते। न कोई पेड़ पुण्यात्मा है, न पापी है। उसके लिए मनुष्य होना जरूरी मनुष्य उठे तो परमात्मा हो सकता है, गिरे तो शैतान हो सकता है। न तो पेड़-पौधे उठकर परमात्मा हो सकते हैं, और न गिरकर शैतान हो सकते हैं। पेड़-पौधे थिर हैं। यही तो उनकी जड़ता है, स्वतंत्रता नहीं है। इस किनारे से उस किनारे जाने की, उस किनारे से इस किनारे आने की स्वतंत्रता नहीं है, बंधे हैं। गौर से देखो, चट्टान पड़ी है। पेड़-पौधे से भी ज्यादा परतंत्र है। एक फूल भी तो नहीं खिला सकती। एक पत्ता भी तो नहीं निकलता। जैसी है बस, पड़ी है। फिर वृक्ष हैं-थोड़ी स्वतंत्रता आई। फूल खिलते हैं, फल लगते हैं, जीवन की कुछ धार है। आकाश की तरफ उठने की अभिलाषा है। सूरज की खोज शुरू हो गई। वही सूरज की खोज तो तुम में आकर परमात्मा की खोज बन जाएगी रोशनी की खोज। ____ इसलिए अफ्रीका के जंगलों में वृक्ष सैकड़ों फीट ऊपर उठ जाते हैं। क्योंकि घने जंगल हैं। सूरज को अगर पाना है तो बहुत लंबा उठना पड़ेगा। जितना घना जंगल होगा, वृक्ष उतने लंबे जाएंगे। उन्हीं वृक्षों को तुम खुले मैदान में लगा दो, उतने लंबे न जाएंगे, ठिगने रह जाएंगे। जरूरत ही न रही, प्रतिस्पर्धा न रही, संघर्ष न रहा। सूरज ऐसे ही सस्ते मिल गया। दाम न चुकाने पड़े। कौन जाए फिर इतना ऊंचा? तो पेड़-पौधे के पास एक स्वतंत्रता है। घने जंगल में हो तो ऊंचा जाता है। घने जंगल में न हो तो ठिगना रह जाता है। खोज करता है, लेकिन जड़ जमीन से बंधी है। हट नहीं पाती। एक जगह गड़ा हुआ है। मजबूर है। __फिर पशु-पक्षी हैं, पेड़-पौधे से ज्यादा स्वतंत्र हैं। जड़ नहीं हैं, कहीं बंधे हुए नहीं हैं, मुक्त हैं। चल-फिर सकते हैं। कम से कम पृथ्वी पर कहीं भी यात्रा कर सकते हैं। सर्दी आ जाए तो धूप में बैठ सकते हैं। धूप बढ़ जाए तो छाया खोज सकते हैं। वृक्ष खड़ा है, हट नहीं सकता। धूप आए, सर्दी आए, सहना पड़ेगा। स्वतंत्रता ज्यादा नहीं है।
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy