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अंतर्बाती को उकसाना ही ध्यान
ठीक दिशा में लगे चित्त का अर्थ है, अपनी दिशा में लौटता। वहां विचार छूटते जाते हैं। धीरे-धीरे तुम ही रह जाते हो, तुम्हारा अकेला होना रह जाता है। शुद्ध। मात्र तुम। इतना शुद्ध कि मैं का भाव भी नहीं उठता। क्योंकि मैं का भाव भी एक विचार है। अहंकार भी नहीं उठता, क्योंकि अहंकार भी एक विचार है। जब और सब छूट जाते हैं, उन्हीं के साथ वह भी छूट जाता है। जिस मुकाम पर तुम 'तू' को छोड़ आते हो, वहीं 'मैं' भी छूट जाता है। जहां तुम दूसरों को छोड़ आते हो, वहीं तुम भी छूट जाते हो। फिर जो शेष रह जाता है, फिर जो शेष रह जाता है शुद्धतम, जब तक उसको न पा लो तब तक जिंदगी गलत दिशा में लगी है।
ये जिंदगी गुजार रहा हूं तेरे बगैर
जैसे कोई गुनाह किए जा रहा हूं मैं जब तक इस जगह न आ जाओ तब तक सारी जिंदगी एक गुनाह है, एक पाप है। तब तक तुम कितना ही अपने को समझाओ, कितना ही अपने को ठहराओ, तुम कंपते ही रहोगे भय से। तब तक तुम कितना ही समझाओ, तुम धोखा दे न पाओगे। तुम्हारी हर सांत्वना के नीचे से खाई झांकती ही रहेगी भय की, घबड़ाहट की। मृत्यु तुम्हारे पास ही खड़ी रहेगी। तुम्हारी जिंदगी को जिंदगी मानकर तुम धोखा न दे पाओगे। और तुम कितने ही पुण्य करो, जब तक तुम स्वयं की सत्ता में नहीं प्रविष्ट हो गए हो
ये जिंदगी गुजार रहा हूं तेरे बगैर वही परमात्मा है। वही तुम्हारा होना है-तुमसे भी मुक्त। वही परमात्मा है। जहां घड़ा छूट गया और कोरा आकाश रह गया। नया, फिर भी सनातन। सदा का, फिर भी सदा नया और ताजा।
ये जिंदगी गुजार रहा हूं तेरे बगैर
जैसे कोई गुनाह किए जा रहा हूं मैं और जब तक तुम उस जगह नहीं पहुंच जाते तब तक तुम अनुभव करते ही रहोगे कि कोई पाप हुआ जा रहा है। कुछ भूल हुई जा रही है। पैर कहीं गलत पड़े जा रहे हैं। लाख सम्हालो, तुम सम्हल न पाओगे। एक ही सम्हलना है, और वह सम्हलना है धीरे-धीरे अपनी तरफ सरकना। उस भीतरी बिंदु पर पहुंच जाना है, जिसके आगे और कुछ भी नहीं। जिसके पार बस विराट आकाश है। ___ इसे बुद्ध ने शुद्धता कहा है। इस शुद्धता में जो प्रविष्ट हो गया उसने ही निर्वाण पा लिया। उसने ही वह पा लिया जिसे पाने के लिए जीवन है। और जब तक ऐसा न हो जाए तब तक गुनगुनाते ही रहना भीतर, गुनगुनाते ही रहना
ये जिंदगी गुजार रहा हं तेरे बगैर
जैसे कोई गुनाह किए जा रहा हूं मैं इसे याद रखना तब तक। भूल मत जाना। कहीं ऐसा न हो कि तुम किसी पड़ाव
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