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प्रार्थना स्वयं मंजिल उनकी सुगंध विपरीत दिशा में भी जाती है। सभी दिशाओं में उनकी सुगंध फैल जाती है।
और जब तक तुम ऐसे अपने को लुटा न सकोगे, तब तक तुम पीड़ित रहोगे । एक ही नर्क है - अपने को प्रगट न कर पाना। और एक ही स्वर्ग है - अपनी अभिव्यक्ति खोज लेना ।
जो गीत तुम्हारे भीतर अनगाया पड़ा है, उसे गाओ । जो वीणा तुम्हारे भीतर सोई पड़ी है, छेड़ो उसके तारों को । जो नाच तुम्हारे भीतर तैयार हो रहा है, उसे तुम बोझ की तरह मत ढोओ। उसे प्रगट हो जाने दो।
प्रत्येक व्यक्ति अपने भीतर बुद्धत्व को लेकर चल रहा है। जब तक वह फूल न खिले, तब तक बेचैनी रहेगी, अशांति रहेगी, पीड़ा रहेगी, संताप रहेगा। वह फूल खिल जाए, निर्वाण है, सच्चिदानंद है, मोक्ष है ।
आज इतना ही ।