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एस धम्मो सनंतनो
प्रेम न होगा, सिर का झुकना होगा-हृदय का बहना नहीं।
असली सवाल प्रेमपात्र का नहीं है, असली सवाल प्रेमपूर्ण हृदय का है। बुद्ध ने इस बात पर बड़ा अदभुत जोर दिया। इसलिए बुद्ध ने परमात्मा की बात नहीं की।
और जितने लोगों को परमात्मा का दर्शन कराया, उतना किसी दूसरे व्यक्ति ने कभी नहीं कराया। ईश्वर को चर्चा के बाहर छोड़ दिया और लाखों लोगों को ईश्वरत्व दिया। भगवान की बात ही न की और संसार में भगवत्ता की बाढ़ ला दी। इसलिए बुद्ध जैसा अदभुत पुरुष मनुष्य के इतिहास में कभी हुआ नहीं। बात ही न उठाई परमात्मा की और न मालूम कितने हृदयों को झुका दिया। __ और ध्यान रखना, बुद्ध के साथ सिर को झुकने का तो सवाल ही न रहा। न कोई भय का कारण है, न कोई परमात्मा है, न डरने की कोई वजह है। न परमात्मा से पाने का कोई लोभ है। मौज से झुकना है, आनंद से झुकना है। अपने ही अहोभाव से झुकना है, अनुग्रह से झुकना है।
जब वृक्ष लद जाता है फलों से तो झुक जाता है। इसलिए नहीं कि फलों को तोड़ने वाले पास आ रहे हैं। अपने भीतरी कारण से झुक जाता है। फल को खाने वाले पास आ रहे हैं इसलिए नहीं झुकता। अपने भीतर के ही अपूर्व बोझ से झुक जाता है। भक्त भगवान के कारण नहीं झुकता। अपने भीतर हृदय के बोझ के कारण झुक जाता है। फल पक गए, शाखाएं झुकने लगीं।
बंदगी तो अपनी फितरत है खुदा हो या न हो बुद्ध का जोर प्रार्थना पर है, परमात्मा पर नहीं। और परमात्मा को काट देने से, बीच में न लेने से, बुद्ध का धर्म बहुत वैज्ञानिक हो गया। तब शुद्ध आंतरिक क्रांति की बात रह गई। ये सूत्र आंतरिक क्रांति के सूत्र हैं। समझने की कोशिश करो। ___'दूसरों के दोष पर ध्यान न दे, दूसरों के कृत्य-अकृत्य को नहीं देखे, केवल अपने कृत्य-अकृत्य का अवलोकन करे।'
जिसकी नजर परमात्मा पर है उसकी नजर दूसरे पर है। जिसने परमात्मा को बाहर देखा, वह शैतान को भी बाहर देखेगा। इसे थोड़ा समझना। थोड़ा बारीक है। पकड़ोगे तो बहुत काम आ जाएगा सूत्र। अगर तुमने परमात्मा को बाहर देखा, तो शैतान को कहां देखोगे? उसे भी तुम बाहर देखोगे। तुम्हारे बाहर देखने का ढंग हर चीज को बाहर देखेगा। तब तुम्हारी नजर दूसरों के आचरण में अटकी रहेगी। ___इसलिए तथाकथित धार्मिक आदमी सदा दूसरों के कृत्य-अकृत्य का विचार करते रहते हैं। दूसरे की आलोचना में लीन रहते हैं। कौन ने बुरा किया, किसने भला किया। कौन मंदिर गया, कौन नहीं गया। दूसरा ही उनके चिंतन में प्रभावी रहता है। इसलिए धार्मिक जिनको तुम कहते हो, उन्हें अपने को छोड़कर सारे जगत की फिक्र बनी रहती है-कौन पाप कर रहा है, कौन पुण्य कर रहा है। कौन नर्क जाएगा, कौन स्वर्ग जाएगा।
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