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आत्मक्रांति का प्रथम सूत्र : अवैर
न कोई रास्ता; न कोई मंजिल; रोशनी का सुराग भी नहीं; कोई एक किरण भी नहीं। और पूरी जिंदगी अंधेरी घाटियों में, शून्य में भटक रही है।
. भटक रही है खलाओं में जिंदगी मेरी
ऐसी ही मनुष्य की दशा है सदा से। बहुत सी झूठी मंजिलें भी तुम बना लेते हो। राहत के लिए कुछ तो चाहिए! सत्य बहुत कड़वा है। और अगर सत्य के साथ तुम खड़े हो जाओ, तो खड़े होना भी मुश्किल मालूम होगा।
सिगमंड फ्रायड ने कहा है कि आदमी बिना झूठ के जी नहीं सकता। झूठ सहारा है। तो हम झूठी मंजिलें बना लेते हैं। असली मंजिल का तो कोई पता नहीं। बिना मंजिल के जीना असंभव। कैसे जीओगे बिना मंजिल के? अगर यह पक्का ही हो जाए कि पता ही नहीं कहां जा रहे हैं, तो पैर कैसे उठेंगे? यात्रा कैसे होगी? तो हम कल्पित मंजिल बना लेते हैं, एक झूठी मंजिल बना लेते हैं। उससे राहत मिल जाती है, लगता है कहीं जा रहे हैं। कोई रास्ता नहीं है। क्योंकि झठी मंजिलों के कहीं कोई रास्ते होते हैं! जब मंजिल ही झूठी है, तो रास्ता कैसे हो सकता है? तो फिर हम रास्ता भी बना लेते हैं। रास्ता बना लेते हैं, मंजिल बना लेते हैं-सब कल्पित, सब मन के जाल, सब सपने! और ऐसे अपने को भर लेते हैं। और लगता है शून्य भर गया, जिंदगी बड़ी भरी-पूरी है।
कोई कुछ दिन हुए चल बसा। एक मित्र ने आकर कहा कि आपको पता चला, फला-फलां व्यक्ति चल बसे? बड़ी भरी-पूरी जिंदगी थी! मैंने पूछा, रुको। चल बसे, ठीक; उसमें तो कुछ किया नहीं जा सकता। लेकिन भरी-पूरी जिंदगी थी, यह तुमसे किसने कहा? शायद उन्होंने सोचकर कहा भी नहीं था। थोड़े झिझके; कहा, मैं तो ऐसे ही कह रहा था। कहने की बात थी। पर मैंने कहा, कहा तब तुम भी सोचते होओगे कि बड़ी भरी-पूरी जिंदगी थी। मैं उनको जानता हूं। और अगर तुम मुझसे पूछो तो कुछ भी नहीं हुआ, क्योंकि वे मरे हुए ही थे। अब मरा हुआ मर जाए, इसमें कौन सी बड़ी घटना हो गयी। जिंदा वे कभी थे नहीं। क्योंकि जिंदगी तो सत्य के साथ ही उपलब्ध होती है, और कोई जिंदगी नहीं है। लेकिन जो झूठ को साथ जी रहा है, वह भी सोचता है, जिंदगी भरी-पूरी है।
कितने झूठ तुमने बना रखे हैं! लड़का बड़ा होगा, शादी होगी, बच्चे होंगे, धन कमाएगा, यश पाएगा, और तुम मर रहे हो! और तुम्हारे बाप भी ऐसे ही मरे, कि तुम बड़े होओगे, कि शादी होगी, कि धन कमाओगे। और तुम्हारा लड़का भी ऐसे ही मरेगा। जिंदगी बड़ी भरी-पूरी जा रही है!
बाप बेटे के लिए मर जाता है। बेटा अपने बेटे के लिए मर जाता है। ऐसा एक-दूसरे पर मरते चले जाते हैं। कोई जीता नहीं। मरना इतना आसान, जीना इतना कठिन।
लोग सोचते हैं, मौत बड़ी दुस्तर है। गलत सोचते हैं। मौत में क्या दुस्तरता है?
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