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यात्री, यात्रा, गंतव्य : तुम्हीं
लेने को तैयार हो? तुम तो पचहत्तर वर्ष के हुए। कब आखिर आएगा? वह आदमी मुस्कुराने लगा। उसने कहा, आपकी बात ठीक है; लेकिन अभी बहुत दूसरे काम भी हैं, अभी दूसरी उलझनें भी हैं। तो मैंने कहा कि इस लड़के का मैं संन्यास वापस ले सकता हूं, अगर तुम संन्यास लेने को तैयार हो। तुमने ही कहा।
मगर वह आदमी सिर्फ तर्क दे रहा था, लड़के को संन्यास से बचाने को। खुद संन्यास लेने के लिए वह तर्क काम का नहीं था। लोग जवान रहते हैं, तब कहते हैं, अभी तो जवान हैं। और जब बूढ़े हो जाते हैं, तब वे कहते हैं, अब तो बूढ़े हो गए।
जब कश्ती साबित-ओ-सालिम थी साहिल की तमन्ना किसको थी
अब ऐसी शिकस्ता कश्ती पर साहिल की तमन्ना कौन करे जब नाव जवान थी-जब कश्ती साबित-ओ-सालिम थी साहिल की तमन्ना किसको थी-तब कौन फिक्र करता था किनारे की, कौन आकांक्षा करता था किनारे की? तब तो तूफानों से जूझ लेने का मन था।
जब कश्ती साबित-ओ-सालिम थी साहिल की तमन्ना किसको थी
अब ऐसी शिकस्ता कश्ती पर.... अब बुढ़ापा आ गया, अब नाव जराजीर्ण हो गयी। .अब ऐसी शिकस्ता कश्ती पर साहिल की तमन्ना कौन करे
प्रमाद से भरा चित्त अपने सोने के लिए उपाय ही खोजता रहता है। जवान हो, तब कहता है अभी जवान हैं। बूढ़ा हो जाए, तो कहता है अब बूढ़े हो गए, अब क्या कर सकेंगे? बच्चे बच्चे हैं, कैसे संन्यस्त हो जाएं? जवान जवान हैं, अभी तो जिंदगी बहुत शेष है। बूढ़े बूढ़े हो गए, अब तो कुछ शेष ही न रहा। तुम प्रमाद के लिए तर्क खोजते हो।
प्रमाद को जो तर्क सहारा देता है, उसी को शास्त्रों ने कुतर्क कहा है। प्रमाद से जो जगाता है, उसी तर्क को शास्त्रों ने सुतर्क कहा है। जो तर्क तुम्हें नींद में डुबाए रखता है, वह आत्मघाती है, वह जहर है। उसमें दबे-दबे तुम मर जाओगे। उसमें बहुत मर चुके हैं। तर्क का उपयोग अपने को जगाने के लिए करनाजैसे-जैसे तुम जागने के लिए थोड़ा रास्ता बनाओगे, तुम पाओगे जागृति के और क्षण आने लगे। तुम जितना-जितना जागृति के लिए उत्सुक होने लगोगे, प्रतीक्षा करने लगोगे, उतने ज्यादा क्षण आने लगेंगे। जिसे तुम चाहते हो, वह आ ही जाता है।
बुद्ध का एक बहुत अनूठा वचन है कि आकांक्षा सोच-विचारकर करना, क्योंकि आकांक्षाएं पूरी हो जाती हैं। जिसे तुम चाहते हो वह आ ही जाता है देर-अबेर। आकांक्षा सोच-समझकर करना।
अगर धन मांगा, धन आ जाएगा; एक दिन आ ही जाएगा। अगर पद मांगा, पद आ जाएगा; एक दिन आ ही जाएगा। क्योंकि आदमी जो चाहता है, धीरे-धीरे उस तरफ खिंचता चला जाता है। जिसकी आकांक्षा होती है, उसका प्रयास भी होने
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