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________________ एस धम्मो सनंतनो ___अगर विगिंस्टीन बुद्ध को देखता तो समझता। अगर विगिंस्टीन के वचन को बुद्ध ने समझा होता तो वे मुस्कुराते और उन्होंने स्वीकृति दी होती। विगिंस्टीन को भी पश्चिम में लोग नास्तिक समझे। नास्तिक नहीं है। पर जो कही नहीं जा सकती बात, अच्छा है न ही कही जाए। कहने से बिगड़ जाती है। कहने से गलत हो जाती है। ___ लाओत्से तक, कहता तो है प्रथम वचन में अपने ताओ-तेह-किंग में कि सत्य कहा नहीं जा सकता, और जो भी कहा जाए वह असत्य हो जाता है; लेकिन फिर भी सत्य के संबंध में बहुत सी बातें कही हैं। बुद्ध ने नहीं कहीं। तुम कहोगे, फिर बुद्ध कहते क्या रहे? बुद्ध ने स्वास्थ्य के संबंध में एक शब्द भी नहीं कहा, केवल बीमारी का विश्लेषण किया और निदान किया; औषधि की व्यवस्था की। बुद्ध ने कहा, मैं एक वैद्य हूं; मैं कोई दार्शनिक नहीं हूं। मैं तुम्हारी बीमारी का विश्लेषण करूंगा, निदान करूंगा, औषधि सुझा दूंगा; और जब तुम ठीक हो जाओगे, तभी तुम जानोगे कि स्वास्थ्य क्या है। मैं उस संबंध में कुछ भी न कहूंगा। स्वास्थ्य जाना जाता है, कहा नहीं जा सकता। बीमारी मिटायी जा सकती है, बीमारी समझायी जा सकती है, बीमारी बनायी जा सकती है, बीमारी का इलाज हो सकता है-सही हो सकता है, गलत हो सकता है-बीमारी के साथ बहुत कुछ हो सकता है। स्वास्थ्य? जब बीमारी नहीं होती तब जो शेष रह जाता है, वही। उस तरफ केवल इशारे हो सकते हैं, मौन। इंगित हो सकते हैं वे भी प्रत्यक्ष नहीं, बड़े परोक्ष। बुद्ध के धर्म को शून्यवादी कहा गया है। शून्यवादी उनका धर्म है। लेकिन इससे यह मत समझ लेना कि शून्य पर उनकी बात पूरी हो जाती है। नहीं, बस शुरू होती है। बुद्ध एक ऐसे उत्तुंग शिखर हैं, जिसका आखिरी शिखर हमें दिखायी नहीं पड़ता। बस थोड़ी दूर तक हमारी आंखें जाती हैं, हमारी आंखों की सीमा है। थोड़ी दूर तक हमारी गर्दन उठती है, हमारी गर्दन के झुकने की सामर्थ्य है। और बुद्ध खोते चले जाते हैं-दूर...हिमाच्छादित शिखर हैं। बादलों के पार! उनका प्रारंभ तो दिखायी पड़ता है, उनका अंत दिखायी नहीं पड़ता। यही उनकी महिमा है। और प्रारंभ को जिन्होंने अंत समझ लिया, वे भूल में पड़ गए। प्रारंभ से शुरू करना; लेकिन जैसे-जैसे तुम शिखर पर उठने लगोगे, और आगे, और आगे दिखायी पड़ने लगा, और आगे दिखायी पड़ने लगेगा। __ बहुत लोग बोले हैं। बहुत लोगों ने मनुष्य के रोग का विश्लेषण किया है; लेकिन ऐसा सचोट नहीं। बड़े सुंदर ढंग से लोगों ने बातें कही हैं, बड़ें गहरे प्रतीक उपाय में लाए हैं। पर बुद्ध, बुद्ध के कहने का ढंग ही और है। अंदाजे-बयां और! जिसने एक बार सुना, पकड़ा गया। जिसने एक बार आंख से आंख मिला ली, फिर भटक न पाया। जिसको बुद्ध की थोड़ी सी भी झलक मिल गयी, उसका जीवन
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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