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________________ प्रेम है महामृत्यु रोज उठाती थी, भक्त आ जाते थे, और उनको उठाती थी आकर। मसहरी खोलकर खड़ी हो जाती-जैसे सदा खड़ी होती थी। ठीक जब वे भोजन करते थे तब वह थाली लगाकर आ जाती थी, बाहर आकर भक्तों के बीच कहती कि अब चलो, परमहंसदेव! लोग हंसते, और लोग रोते भी कि बेचारी! इसका दिमाग खराब हो गया! किसको कहती है ? थाली लगाकर बैठती, पंखा झलती। वहां कोई भी न था। ___ अगर प्रेम की आंख न हो तो वहां कोई भी न था, और अगर प्रेम की आंख हो तो वहां सब था। प्रेमी इसीलिए तो पागल दिखायी पड़ता है, क्योंकि उसे कुछ ऐसी चीजें दिखायी पड़ने लगती हैं जो अप्रेमी को दिखायी नहीं पड़तीं। और प्रेमी अंधा मालूम पड़ता है, बड़े मजे की बात है। प्रेमी के पास ही आंख होती है, लेकिन प्रेमी आंख वालों को अंधा दिखायी पड़ता है। क्योंकि उसे कुछ चीजें दिखायी पड़ती हैं जो तुम्हें दिखायी नहीं पड़ती। तुम्हें लगता है, पागल है, अंधा है। ___शारदा सधवा ही रही। प्रेम की एक बड़ी ऊंची मंजिल उसने पायी। रामकृष्ण उसके लिए कभी नहीं मरे। प्रेम मृत्यु को जानता ही नहीं। लेकिन प्रेम की मृत्यु में जो मरा हो पहले, वही फिर प्रेम के अमृत को जान पाता है। प्रेम स्वयं मृत्यु है, इसलिए फिर किसी और मृत्यु को प्रेम क्या जानेगा! नहीं, समय का और स्थान का कोई अंतर नहीं है। प्रेम सब फासले मिटा देता है। एक ही फासला है, और वह अप्रेम का है। एक ही दूरी है, वह अप्रेम की है। जब तक तुम्हारे जीवन में अप्रेम है तब तक तुम सभी से दूर हो। जिस दिन तुम्हारे जीवन में प्रेम जागेगा, प्रेम का झरना फूटेगा, तुम सभी के पास हो जाओगे। और तुमने एक के साथ भी अगर प्रेम का नाता जोड़ लिया, तो तुम पाओगे कि तुम्हें प्रेम का स्वाद मिल गया। फिर एक से क्या जोड़ना! फिर सभी से जोड़ लेना। फिर सर्व से जोड़ा जा सकता है। प्रेम तो पाठ है प्रार्थना का। सितारों के आगे जहां और भी हैं अभी इश्क के इम्तिहां और भी हैं ' प्रेम तो पाठ है प्रार्थना का। वह तो बारहखड़ी है। फिर बड़े इम्तिहान हैं। आखिरी इम्तिहान तो वही है जहां इस सारे अस्तित्व के प्रति तुम्हारा प्रेम हो जाता है, सर्व तुम्हारा प्रेमी हो जाता है। किसी एक को प्रेम करना ऐसे ही है जैसे खिड़की से संसार के सौंदर्य को झांकना। फिर खिड़की से जिसने झांककर देख लिया, वह खिड़की पर ही क्यों रुकेगा; फिर बाहर का निमंत्रण मिल गया, फिर चांद-तारे बुला रहे हैं; फिर वह बाहर आ जाता है खुले आकाश के नीचे। प्रेम का पाठ सीखा, खिड़की के पास से। इसलिए खिड़की के प्रति सदा ही कृतज्ञता का बोध रहेगा, भाव रहेगा। गुरु के पास परमात्मा का पाठ सीखा जाता है। प्रेमी के पास प्रेम का पाठ सीखा जाता है। अनुग्रह रहेगा उसका, सदा-सदा के लिए। लेकिन जल्दी ही उससे पार होना है, और विराट चारों तरफ घिरा हुआ है। क्या खिड़की से देखना आकाश को, 195
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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