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एस धम्मो सनंतनो
हैं। तो लोगों ने समझा, यह संदेहवादी है। हिंदू तक न समझ पाए, जो जमीन पर सबसे ज्यादा पुरानी कौम है। बुद्ध निश्चित ही बड़े अनूठे रहे होंगे, तभी तो हिंदू तक समझने से चूक गए। हिंदुओं तक को यह आदमी खतरनाक लगा, घबड़ाने वाला लगा। हिंदुओं को भी लगा कि यह तो सारे आधार गिरा देगा धर्म के। और यही आदमी है, जिसने धर्म के आधार पहली दफा ढंग से रखे।
श्रद्धा पर भी कोई आधार रखा जा सकता है! अनुभव पर ही आधार रखा जा सकता है। अनुभव की छाया की तरह श्रद्धा उत्पन्न होती है। श्रद्धा अनुभव की सुगंध है। और अनुभव के बिना श्रद्धा अंधी है। और जिस श्रद्धा के पास आंख न हों, उससे तुम सत्य तक पहुंच पाओगे?
बुद्ध ने बड़ा दुस्साहस किया। बुद्ध जैसे व्यक्ति पर भरोसा करना एकदम सुगम होता है। उसके उठने-बैठने में प्रामाणिकता होती है। उसके शब्द-शब्द में वजन होता है। उसके होने का पूरा ढंग स्वयंसिद्ध होता है। उस पर श्रद्धा आसान हो जाती है। लेकिन बुद्ध ने कहा, तुम मुझे अपनी बैसाखी मत बनाना। तुम अगर लंगड़े हो,
और मेरी बैसाखी के सहारे चल लिए-कितनी दूर चलोगे? मंजिल तक न पहुंच पाओगे। आज मैं साथ हूं, कल मैं साथ न रहूंगा, फिर तुम्हें अपने ही पैरों पर चलना है। मेरी रोशनी से मत चलना, क्योंकि थोड़ी देर को संग-साथ हो गया है अंधेरे जंगल में। तुम मेरी रोशनी में थोड़ी देर रोशन हो लोगे; फिर हमारे रास्ते अलग हो जाएंगे। मेरी रोशनी मेरे साथ होगी, तुम्हारा अंधेरा तुम्हारे साथ होगा। अपनी रोशनी पैदा करो। अप्प दीपो भव! __ यह बुद्ध का धम्मपद, कैसे वह रोशनी पैदा हो सकती है अनुभव की, उसका विश्लेषण है। श्रद्धा की कोई मांग नहीं है। श्रद्धा की कोई आवश्यकता भी नहीं है। इसलिए बुद्ध को लोगों ने नास्तिक कहा। क्योंकि बुद्ध ने यह भी नहीं कहा कि तुम परमात्मा पर श्रद्धा करो।
तुम कैसे करोगे श्रद्धा? तुम्हें पता होता तो तुम श्रद्धा करते ही। तुम्हें पता नहीं है। इस अज्ञान में तुम कैसे श्रद्धा करोगे? और अज्ञान में तुम जो श्रद्धा बांध भी लोगे, वह तुम्हारी अज्ञान की ईंटों से बना हुआ भवन होगा; उसे तुम परमात्मा का मंदिर कैसे कहोगे? वह तुमने भय में बना लिया होगा। मौत डराती होगी, इसलिए सहारा पकड़ लिया होगा। यहां जिंदगी हाथ से जाती मालूम होती होगी, इसलिए स्वर्ग की कल्पनाएं कर ली होंगी। लेकिन इन कल्पनाओं से, भय पर खड़ी हुई इन धारणाओं से, कहीं कोई मुक्त हुआ है! इससे ही तो आदमी पंगु है। इससे ही तो आदमी पक्षाघात में दबा है। इसलिए बुद्ध ने ईश्वर की बात नहीं की। .. . एच.जी.वेल्स ने बुद्ध के संबंध में कहा है कि पृथ्वी पर इस जैसा ईश्वरीय व्यक्ति और इस जैसा ईश्वर-विरोधी व्यक्ति एक साथ पाना कठिन है-सो गॉड लाइक एंड सो गॉडलेस! अगर तुम ईश्वरीय प्रतिभाओं को खोजने निकलो तो तुम
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