________________
ताओ उपनिषद भाग ६
पश्चिम के लोग बड़ी मुश्किल में रहे हैं। क्योंकि वे समझ ही नहीं पाते, हिंदू देखो सूरज के सामने सूर्य-नमस्कार कर रहे हैं! सूर्य को कुछ नमस्कार करने से होने वाला है। वह कोई सवाल ही नहीं है। नमस्कार करने की कला है, उसको सीखना है। सूरज भी काफी ठीक है। सूर्य-नमस्कार ध्यान का एक गहरा प्रयोग है। सूरज के कारण नहीं, अगर तुमने सूरज के कारण समझा तो तुम भूल गए, झुकने के कारण।
तो पहला कदम है कि झुको। फिर दूसरा कदम है कि नीचे होने में कुशल हो जाओ। तब सारा संसार तुम्हारी तरफ बहता रहेगा; तुम्हारी संपदा का अंत न होगा। तुम कितनी ही उलीचो और बांटो अपने आनंद की संपदा को, वह बढ़ती ही जाएगी। क्योंकि तुमने गड्ढा बना लिया। अमृत चला आ रहा है। तुम दोनों हाथ उलीचते रहो, कुछ भी चुकेगा न। जितना उलीचोगे उतना पाओगे, बढ़ता चला जाता है।
___ 'इस तरह वे खड्डों-घाटियों के स्वामी बन गए। लोगों के बीच प्रधान होने के लिए किसी को उनके अनुगत की तरह होना चाहिए।'
अगर तुमने लोगों के आगे होने की कोशिश की तो लोग तुम्हें पीछे पहुंचा देंगे। लोग यानी अहंकार से भरी हुई प्रतिमाएं हैं; पागल हैं। तुमने अगर आगे होने की कोशिश की तो वे घसीट कर तुम्हें पीछे कर देंगे। तुमने अगर पीछे होने की कोशिश की तो वे तुम्हें सिर-आंखों पर उठा लेंगे। जब तुम उनके अहंकार पर चोट नहीं करते तब वे तुम्हें स्वीकार कर लेते हैं, जब तुम उनके अहंकार पर चोट करते हो तब उनका अहंकार प्रतिशोध से भर जाता है। और लोग तो पागल हैं।
तो लाओत्से कहता है, अगर तुम चाहते हो कि सच में ही तुम लोगों के आगे हो जाओ तो कला है पीछे हो जाना। लेकिन यहां एक बात समझ लेना कि अगर तुम आगे होने के लिए ही पीछे हो रहे हो तो तुम चूक जाओगे। क्योंकि वह तो कोई बात न हुई। तुम किसको धोखा दोगे? तो इसको ऐसा मत समझना कि अगर तुम चाहते हो आगे होना तो पीछे हो जाओ। क्योंकि अगर आगे होने की चाह है और पीछे होना केवल एक साधन है, तो तुम पीछे हो ही नहीं रहे।
बायजीद के एक शिष्य ने उससे कहा कि मैंने तुम्हारे वचनों में पढ़ा और तुमसे सुना कि अगर तुम स्त्रियों को छोड़ दोगे तो स्त्रियां तुम्हारे पीछे आएंगी, अगर तुम धन छोड़ दोगे तो धन की देवी तुम्हारा पीछा करेगी। आज बीस साल हो गए, और अभी तक कोई आया नहीं। तो बायजीद ने कहा, वह आएगा भी नहीं, क्योंकि तुम पीछे लौट-लौट कर देख रहे हो। वह धन की देवी आएगी भी नहीं, क्योंकि तुम धोखा नहीं दे सकते धन की देवी को। तुम पीछे लौट कर देख रहे हो। तो तुम धोखा अपने को ही दे रहे हो।
अगर तुम श्रेष्ठ होना चाहो लोगों में इसलिए पीछे खड़े हो जाओ, तो तुम कभी भी लाओत्से को न समझ पाओगे। हां, अगर तुम पीछे खड़े हो जाओ तो तुम श्रेष्ठ हो जाओगे। वह बाइ-प्रोडक्ट है, वह परिणाम है। वह जो पीछे हो जाता है उसको लोग सिर-आंखों पर उठा लेते हैं। इसलिए नहीं कि उसकी चाह थी, बल्कि इसलिए कि जो पीछे हो जाता है वह श्रेष्ठ हो जाता है। उसे श्रेष्ठ होने की चाह नहीं है। पीछे हो जाने में श्रेष्ठ हो जाना छिपा है। श्रेष्ठ होने की चाह तो निकृष्ट मन की चाह है। श्रेष्ठ होने की चाह तो हीनता की चाह है। उसने सब हीनता छोड़ दी; उसने हीनता इस तरह छोड़ दी कि अब वह सब के पीछे खड़ा हो सकता है-अपनी महा गरिमा में। अब वह अपनी गरिमा को अपने भीतर सम्हाले हुए है। अब किसी के आगे होने से आगे होने का सवाल नहीं है। अब वह अपने भीतर है, और परम आनंदित है। और उसका दीया जल गया है। अब वह श्रेष्ठ है। लोग उसे सिर-आंखों पर उठा लेंगे।
लेकिन इस कामना से तुम पीछे मत खड़े होना, नहीं तो तुम्हारा दीया बुझा ही रहेगा। तुम पीछे खड़े ही नहीं हो। तुम तो प्रतीक्षा करोगे कि कब लोग आएं, कब आंखों पर उठाएं। तुम बार-बार लाओत्से की किताब पढ़ोगे कि
76