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- सृजन है असली बल, लेकिन दिखाई नहीं पड़ता, क्योंकि वह जल की तरलता जैसा है।
जो प्रथम होने की दौड़ में लग जाएगा वह परमात्मा के राज्य में अंतिम रह जाएगा। ० संप्रदाय मृत घटना है। ० संत सत्ता से ऊपर होना चाहिए। ० भय से कुछ भी नष्ट नहीं होता, सिर्फ दब जाता है। - समाज कृत्य की फिक्र करता है, तुम्हारी अंतरात्मा की नहीं। • जिस दिन तुम अपने को पहचान लेते हो, अचानक तुम सारे अस्तित्व को पहचान लेते हो। 0 जानने के दावे सिर्फ अज्ञानी करते हैं। 0 जागना ही जानना है, जागने की क्षमता तुम्हारी आत्मा की क्षमता है।
ये तो केवल कुछ शब्द मोती हैं, खजाना हासिल करना हो तो सागर में गहरे उतरना होगा। अब आप हैं, किताब है, और मोती खोजने की आपकी क्षमता!–तीनों को प्रणाम!
सुभाष काबरा
श्री सुभाष काबरा, हिंदी काव्य-जगत के सुप्रसिद्ध हास्य-व्यंग्य कवि होने के साथ ही साथ एक सफल मंच संचालक भी हैं। आप देश-विदेश में 600 से अधिक कवि सम्मेलनों में काव्य-पाठ एवं मंच संचालन कर चुके हैं। सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से भी कई बार आपकी रचनाएं प्रसारित हुई हैं। आपकी प्रकाशित कृतियों में 'कबूतरखाने के लोग' विशेष उल्लेखनीय है। 1981 के दीक्षित पुरस्कार (बंबई) सहित देश की अनेक संस्थाओं द्वारा आपको सम्मानित एवं पुरस्कृत किया जा चुका है। आपकी हास्य-व्यंग्य रचनाओं पर 'हास्य-धारा', 'हंसे कि फंसे' आदि आडियो कैसेट भी प्रकाशित हुए हैं। सम्प्रति श्री काबरा काव्य-सृजन के साथ कई सामाजिक-सांस्कृतिक संस्थाओं में भी अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं।